ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी सिकीलधे बच्चों प्रति रूहानी बाप बैठ समझाते हैं। रूहानी बच्चे
जानते हैं रूहानी बाप एक ही बार हर 5 हज़ार वर्ष के बाद आते हैं जरूर। कल्प नाम रख
दिया है जो कहना पड़ता है। इस ड्रामा की अथवा सृष्टि की आयु 5 हज़ार वर्ष है, यह
बातें एक ही बाप बैठ समझाते हैं। यह कभी भी कोई मनुष्य के मुख से नहीं सुन सकते
हैं। तुम रूहानी बच्चे बैठे हो। तुम जानते हो बरोबर हम सभी आत्माओं का बाप वह एक
है। बाप ही बच्चों को बैठ अपना परिचय देते हैं। जो कोई भी मनुष्य मात्र नहीं जानते।
कोई को पता नहीं गॉड वा ईश्वर क्या वस्तु है जबकि उनको गॉड फादर बाप कहते हैं तो
बहुत प्यार होना चाहिए। बेहद का बाप है तो जरूर उनसे वर्सा भी मिलता होगा। अंग्रेजी
में अक्षर अच्छा कहते हैं हेविनली गॉड फादर। हेविन कहा जाता है नई दुनिया को और हेल
कहा जाता है पुरानी दुनिया को। परन्तु स्वर्ग को कोई जानते नहीं। संन्यासी तो मानते
ही नहीं। वह कभी ऐसे नहीं कहेंगे कि बाप स्वर्ग का रचयिता है। हेविनली गॉड फादर -
यह अक्षर बहुत मीठा है और हेविन मशहूर भी है। तुम बच्चों की बुद्धि में हेविन और
हेल का सारा चक्र सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का बुद्धि में फिरता है, जो-जो
सर्विसएबुल हैं, सभी तो एकरस सर्विसएबुल नहीं बनते।
तुम अपनी राजधानी स्थापन कर रहे हो फिर से। तुम कहेंगे हम रूहानी बच्चे बाप की
श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत पर चल रहे हैं। ऊंच ते ऊंच बाप की ही श्रीमत है। श्रीमद्
भगवद् गीता भी गाई हुई है। यह है पहले नम्बर का शास्त्र। बाप का नाम सुनने से ही झट
वर्सा याद आ जाता है। यह दुनिया में कोई भी नहीं जानते कि गॉड फादर से क्या मिलता
है। अक्षर कहते हैं प्राचीन योग। परन्तु समझते नहीं कि प्राचीन योग किसने सिखाया?
वो तो श्रीकृष्ण ही कहेंगे क्योंकि गीता में श्रीकृष्ण का नाम डाल दिया है। अभी तुम
समझते हो बाप ने ही राजयोग सिखाया, जिससे सब मुक्ति-जीवनमुक्ति को पाते हैं। यह भी
समझते हो कि भारत में ही शिवबाबा आया था, उनकी जयन्ती भी मनाते हैं परन्तु गीता में
नाम गुम होने से महिमा भी गुम हो गई है। जिससे सारी दुनिया को सुख-शान्ति मिलती है,
उस बाप को भूल गये हैं। इनको कहा ही जाता है एकज़ भूल का नाटक। बड़े ते बड़ी भूल यह
है जो बाप को नहीं जानते। कभी कहते वह नाम-रूप से न्यारा है फिर कहते कच्छ-मच्छ
अवतार है। ठिक्कर-भित्तर में है। भूल में भूल होती जाती है। सीढ़ी नीचे उतरते जाते
हैं। कला कम होती जाती है, तमोप्रधान बनते जाते हैं। ड्रामा के प्लैन अनुसार जो बाप
स्वर्ग का रचयिता है, जिसने भारत को स्वर्ग का मालिक बनाया, उनको ठिक्कर-भित्तर में
कह देते हैं। अभी बाप समझाते हैं तुम सीढ़ी कैसे उतरते आये हो, कुछ भी किसको पता नहीं
है। ड्रामा क्या है, पूछते रहते हैं। यह दुनिया कब से बनी है? नई सृष्टि कब थी तो
कह देंगे लाखों वर्ष आगे। समझते हैं पुरानी दुनिया में तो अभी बहुत वर्ष पड़े हैं,
इसको अज्ञान अन्धियारा कहा जाता है। गायन भी है ज्ञान अंजन सतगुरू दिया, अज्ञान
अन्धेर विनाश। तुम समझते हो रचयिता बाप जरूर स्वर्ग ही रचेंगे। बाप ही आकर नर्क को
स्वर्ग बनाते हैं। रचयिता बाप ही आकर सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान सुनाते हैं।
आते भी हैं अन्त में। टाइम तो लगता है ना। यह भी बच्चों को समझाया है ज्ञान में इतना
समय नहीं लगता है, जितना याद की यात्रा में लगता है। 84 जन्मों की कहानी तो जैसे एक
कहानी है, आज से 5 वर्ष पहले किन्हों का राज्य था, वह राज्य कहाँ गया?
तुम बच्चों को अब सारी नॉलेज है। तुम हो कितने साधारण अजामिल जैसे पापी,
अहिल्यायें, कुब्जायें, भीलनियाँ उनको कितना ऊंच बनाते हैं। बाप समझाते हैं - तुम
क्या से क्या बन गये हो। बाप आकर समझाते हैं - पुरानी दुनिया का अब हाल देखो क्या
है? मनुष्य कुछ भी नहीं जानते कि सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है? बाप कहते हैं तुम
अपनी दिल पर हाथ रखकर पूछो - आगे यह कुछ जानते थे? कुछ भी नहीं। अभी जानते हो बाबा
फिर से आकर हमको विश्व की बादशाही देते हैं। कोई की बुद्धि में नहीं आयेगा कि विश्व
की बादशाही क्या होती है। विश्व माना सारी दुनिया। तुम जानते हो बाप हमको ऐसा राज्य
देते हैं जो हमसे आधाकल्प तक कोई छीन नहीं सकते। तो बच्चों को कितनी खुशी होनी
चाहिए। बाप से कितना बार राज्य लिया है। बाप सत्य है, सत्य शिक्षक भी है, सतगुरू भी
है। कब सुना ही नहीं। अभी अर्थ सहित तुम समझते हो। तुम बच्चे हो, बाप को तो याद कर
सकते हो। आजकल छोटेपन में ही गुरू करते हैं। गुरू का चित्र बनाए भी गले में डालते
हैं वा घर में रखते हैं। यहाँ तो वन्डर है - बाप, शिक्षक, सतगुरू सब एक ही है। बाप
कहते हैं मैं साथ में ले चलूँगा। तुमसे पूछेंगे क्या पढ़ते हो? बोलो, हम नई दुनिया
में राजाई प्राप्त करने लिए राजयोग पढ़ते हैं। यह है ही राजयोग। जैसे बैरिस्टर योग
होता है तो जरूर बुद्धि का योग बैरिस्टर तरफ जायेगा। टीचर को जरूर याद तो करेंगे
ना। तुम कहेंगे हम स्वर्ग की राजाई प्राप्त करने के लिए ही पढ़ते हैं। कौन पढ़ाते
हैं? शिवबाबा भगवान। उनका नाम तो एक ही है जो चला आया है। रथ का नाम तो है नहीं।
मेरा नाम है ही शिव। बाप शिव और रथ ब्रह्मा कहेंगे। अभी तुम जानते हो यह कितना
वन्डरफुल है, शरीर तो एक ही है। इनको भाग्यशाली रथ क्यों कहते हैं? क्योंकि शिवबाबा
की प्रवेशता है तो जरूर दो आत्मायें ठहरी। यह भी तुम जानते हो और किसको तो यह ख्याल
में भी नहीं आता। अब दिखाते हैं भागीरथ ने गंगा लाई। क्या पानी लाया? अभी तुम
प्रैक्टिकल देखते हो - क्या लाया है, किसने लाया है? किसने प्रवेश किया है? बाप ने
किया ना। मनुष्य में पानी थोड़ेही प्रवेश करेगा। जटाओं से पानी थोड़ेही आयेगा। इन
बातों पर मनुष्य कभी ख्याल भी नहीं करते हैं। कहा ही जाता है - रिलीजन इज़ माइट।
रिलीजन में ताकत है। बताओ, सबसे जास्ती किस रिलीजन में ताकत है? (ब्राह्मण रिलीजन
में) हाँ यह ठीक है, जो कुछ ताकत है ब्राह्मण धर्म में ही है, और कोई रिलीजन में
कोई ताकत नहीं। तुम अभी ब्राह्मण हो। ब्राह्मणों को ताकत मिलती है बाप से, जो फिर
तुम विश्व के मालिक बनते हो। तुम्हारे में कितनी बड़ी ताकत है। तुम कहेंगे हम
ब्राह्मण धर्म के हैं। किसकी बुद्धि में नहीं बैठेगा। विराट रूप भल बनाया है परन्तु
वह भी आधा है। मुख्य रचता और उनकी पहली रचना को कोई नहीं जानते। बाप है रचता, फिर
ब्राह्मण हैं चोटी, इसमें ताकत है। बाप को सिर्फ याद करने से ताकत मिलती है। बच्चे
तो जरूर नम्बरवार ही बनेंगे ना। तुम इस दुनिया में सर्वोत्तम ब्राह्मण कुल भूषण हो।
देवताओं से भी ऊंच हो। तुमको अब ताकत मिलती है। सबसे जास्ती ताकत है ब्राह्मण धर्म
में। ब्राह्मण क्या करते हैं? सारी विश्व को शान्त बना देते हैं। तुम्हारा धर्म ऐसा
है जो सर्व की सद्गति करते हैं श्रीमत द्वारा। तब बाप कहते हैं तुमको अपने से भी
ऊंच बनाता हूँ। तुम ब्रह्माण्ड के भी मालिक, विश्व के भी मालिक बनते हो। सारे विश्व
पर तुम राजाई करेंगे। अभी गाते हैं ना - भारत हमारा देश है। कभी महिमा के गीत गाते,
कभी फिर कहते भारत की क्या हालत है......! जानते नहीं कि भारत इतना ऊंच कब था!
मनुष्य तो समझते हैं स्वर्ग अथवा नर्क यहाँ है, जिसको धन मोटर आदि हैं, वह स्वर्ग
में है। यह नहीं समझते स्वर्ग कहा ही जाता है नई दुनिया को। यहाँ सब कुछ सीखना है।
साइंस का हुनर भी फिर वहाँ काम में आता है। यह साइंस भी वहाँ सुख देती है। यहाँ तो
इन सबसे है अल्पकाल का सुख। वहाँ तुम बच्चों के लिए यह स्थाई सुख हो जायेगा। यहाँ
सब सीखना है जो फिर संस्कार ले जायेंगे। कोई नई आत्मायें नहीं आयेंगी, जो सीखेंगी।
यहाँ के बच्चे ही साइंस सीखकर वहाँ चलते हैं। बहुत होशियार हो जायेंगे। सब संस्कार
ले जायेंगे फिर वहाँ काम में आयेंगे। अभी है अल्पकाल का सुख। फिर यह बॉम्ब्स आदि ही
सबको खलास कर देंगे। मौत के बिगर शान्ति का राज्य कैसे हो। यहाँ तो अशान्ति का
राज्य है। यह भी तुम्हारे में नम्बरवार हैं जो समझते हैं, हम पहले-पहले अपने घर
जायेंगे फिर सुखधाम में आयेंगे। सुख में बाप तो आते ही नहीं। बाप कहते हैं मुझे भी
वानप्रस्थ रथ चाहिए ना। भक्ति मार्ग में भी सबकी कामनायें पूरी करता आया हूँ।
सन्देशियों को भी दिखाया है - कैसे भक्त लोग तपस्या पूजा आदि करते हैं, देवियों को
सजाए, पूजा आदि कर फिर समुद्र में डुबो देते हैं। कितना खर्च होता है। पूछो यह कब
से शुरू हुआ है? तो कहेंगे परम्परा से चला आया है। कितना भटकते रहते हैं। यह भी सब
ड्रामा है।
बाप बार-बार बच्चों को समझाते हैं हम तुमको बहुत मीठा बनाने आये हैं। यह देवतायें
कितने मीठे हैं। अभी तो मनुष्य कितने कड़ुवे हैं। जिन्होंने बाप को बहुत मदद की थी,
उन्हों की पूजा करते रहते हैं। तुम्हारी पूजा भी होती है, पद भी तुम ऊंच प्राप्त
करते हो। बाप खुद कहते हैं मैं तुमको अपने से भी ऊंच बनाता हूँ। ऊंच ते ऊंच भगवान
की है श्रीमत। गीता में भी श्रीमत मशहूर है। श्रीकृष्ण तो इस समय बाप से वर्सा ले
रहे हैं। श्रीकृष्ण की आत्मा के रथ में बाप ने प्रवेश किया है। कितनी वन्डरफुल बात
है। कभी किसकी बुद्धि में आयेगा नहीं। समझने वालों को भी समझाने में बड़ी मेहनत लगती
है। बाप कितना अच्छी रीति बच्चों को समझाते हैं। बाबा लिखते हैं सर्वोत्तम ब्रह्मा
मुख वंशावली ब्राह्मण। तुम ऊंच सर्विस करते हो तो यह प्राइज़ मिलती है। तुम बाप के
मददगार बनते हो तो सबको प्राइज़ मिलती है - नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। तुम्हारे
में भी बड़ी ताकत है। तुम मनुष्य को स्वर्ग का मालिक बना सकते हो। तुम रूहानी सेना
हो। तुम यह बैज नहीं लगायेंगे तो मनुष्य कैसे समझेंगे कि यह भी रूहानी मिलेट्री है।
मिलेट्री वालों को हमेशा बैज लगा हुआ होता है। शिवबाबा है नई दुनिया का रचयिता। वहाँ
इन देवताओं का राज्य था, अब नहीं है। फिर बाप कहते हैं मनमनाभव। देह सहित सब
सम्बन्ध छोड़ मामेकम् याद करो तो श्रीकृष्ण की डिनायस्टी में आ जायेंगे। इसमें लज्जा
की तो बात ही नहीं। बाप की याद रहेगी। बाप इनके लिए भी बताते हैं यह नारायण की पूजा
करते थे, नारायण की मूर्ति साथ में रहती थी। चलते फिरते उनको देखते थे। अभी तुम
बच्चों को ज्ञान है, बैज तो जरूर लगा रहना चाहिए। तुम हो नर को नारायण बनाने वाले।
राजयोग भी तुम ही सिखलाते हो। नर से नारायण बनाने की सर्विस करते हो। अपने को देखना
है हमारे में कोई अवगुण तो नहीं है?
तुम बच्चे बापदादा के पास आते हो, बाप है शिवबाबा, दादा है उनका रथ। बाप जरूर रथ
द्वारा ही मिलेंगे ना। बाप के पास आते हैं, रिफ्रेश होने। सम्मुख बैठने से याद पड़ती
है। बाबा आया है ले जाने के लिए। बाप सम्मुख बैठे हैं तो जास्ती याद आनी चाहिए। अपनी
याद की यात्रा को वहाँ भी तुम रोज़ बढ़ा सकते हो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपने को देखना है कि हमारे में कोई अवगुण तो नहीं हैं! जैसे देवतायें
मीठे हैं, ऐसा मीठा बना हूँ?
2) बाप की श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत पर चल अपनी राजधानी स्थापन करनी है। सर्विसएबुल
बनने के लिए सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का, हेविन और हेल का ज्ञान बुद्धि में फिराना
है।