23-10-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठेबच्चे - बाप आये हैं
तुम बच्चों को तैरना सिखलाने, जिससे तुम इस दुनिया से पार हो जाते हो, तुम्हारे लिए
दुनिया ही बदल जाती है''
प्रश्नः-
जो बाप के
मददगार बनते हैं, उन्हें मदद के रिटर्न में क्या प्राप्त होता है?
उत्तर:-
जो बच्चे अभी
बाप के मददगार बनते हैं, उन्हें बाप ऐसा बना देते हैं जो आधाकल्प कोई की मदद लेने
वा राय लेने की दरकार ही नहीं रहती है। कितना बड़ा बाप है, कहते हैं बच्चे तुम मेरे
मददगार नहीं होते तो हम स्वर्ग की स्थापना कैसे करते।
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठेनम्बरवार अति मीठेरूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप समझाते हैं क्योंकि बहुत
बच्चे बेसमझ बन गये हैं। रावण ने बहुत बेसमझ बना दिया है। अब हमको कितना समझदार
बनाते हैं। कोई आई.सी.एस. का इम्तहान पास करते हैं तो समझते हैं बहुत बड़ा इम्तहान
पास किया है। अभी तुम तो देखो कितना बड़ा इम्तहान पास करते हो। ज़रा सोचो तो सही
पढ़ाने वाला कौन है! पढ़ने वाले कौन हैं! यह भी निश्चय है - हम कल्प-कल्प हर 5
हज़ार वर्ष बाद बाप, टीचर, सतगुरू से फिर मिलते ही रहते हैं। सिर्फ तुम बच्चे ही
जानते हो - हम कितना ऊंच ते ऊंच बाप द्वारा ऊंच वर्सा पाते हैं। टीचर भी वर्सा देते
हैं ना, पढ़ा करके। तुमको भी पढ़ा करके तुम्हारे लिए दुनिया को ही बदल देते हैं, नई
दुनिया में राज्य करने के लिए। भक्ति मार्ग में कितनी महिमा गाते हैं। तुम उन द्वारा
अपना वर्सा पा रहे हो। यह भी तुम बच्चे जानते हो कि पुरानी दुनिया बदल रही है। तुम
कहते हो हम सब शिवबाबा के बच्चे हैं। बाप को भी आना पड़ता है - पुरानी दुनिया को नई
बनाने। त्रिमूर्ति के चित्र में भी दिखाते हैं कि ब्रह्मा द्वारा नई दुनिया की
स्थापना। तो जरूर ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण-ब्राह्मणियाँ चाहिए। ब्रह्मा तो नई
दुनिया स्थापन नहीं करते। रचता है ही बाप। कहते हैं मैं आकर युक्ति से पुरानी दुनिया
का विनाश कराए नई दुनिया बनाता हूँ। नई दुनिया के रहवासी बहुत थोड़े होते हैं।
गवर्मेन्ट कोशिश करती रहती है कि जनसंख्या कम हो। अब कम तो नहीं होगी। लड़ाई में
करोड़ों मनुष्य मरते हैं फिर मनुष्य कम थोड़ेही होते हैं, जनसंख्या तो फिर भी बढ़ती
जाती है। यह भी तुम जानते हो। तुम्हारी बुद्धि में विश्व के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान
है। तुम अपने को स्टूडेण्ट भी समझते हो। तैरना भी सीखते हो। कहते हैं ना नईया मेरी
पार करो। बहुत नामीग्रामी होते हैं जो तैरना सीखते हैं। अभी तुम्हारा तैरना देखो
कैसा है, एकदम ऊपर में चले जाते हो फिर यहाँ आते हो। वह तो दिखलाते हैं इतने माइल्स
ऊपर में गये। तुम आत्मायें कितना माइल्स ऊपर में जाते हो। वह तो स्थूल वस्तु है,
जिसकी गिनती करते हैं। तुम्हारा तो अनगिनत है। तुम जानते हो हम आत्मायें अपने घर चली
जायेंगी, जहाँ सूर्य-चाँद आदि नहीं होते। तुमको खुशी है - वह हमारा घर है। हम वहाँ
के रहने वाले हैं। मनुष्य भक्ति करते हैं, पुरुषार्थ करते हैं - मुक्तिधाम में जाने
के लिए। परन्तु कोई जा नहीं सकते। मुक्तिधाम में भगवान से मिलने की कोशिश करते हैं।
अनेक प्रकार के यत्न करते हैं। कोई कहते हैं हम ज्योति ज्योत में समा जायें। कोई
कहते हैं मुक्तिधाम में जायें। मुक्तिधाम का किसको पता नहीं है। तुम बच्चे जानते हो
बाबा आया हुआ है अपने घर ले जायेंगे। मीठा-मीठा बाबा आया हुआ है, हमको घर ले जाने
लायक बनाते हैं। जिसके लिए आधाकल्प पुरुषार्थ करते भी बन नहीं सके हैं। न कोई ज्योति
में समा सके, न मुक्तिधाम में जा सके, न मोक्ष को पा सके। जो कुछ पुरुषार्थ किया वह
व्यर्थ। अभी तुम ब्राह्मण कुल भूषणों का पुरुषार्थ सत्य सिद्ध होता है। यह खेल कैसा
बना हुआ है। तुमको अभी आस्तिक कहा जाता है। बाप को अच्छी रीति तुम जानते हो और बाप
द्वारा सृष्टि चक्र को भी जाना है। बाप कहते हैं मुक्ति-जीवनमुक्ति का ज्ञान कोई
में भी नहीं है। देवताओं में भी नहीं है। बाप को कोई नहीं जानते तो किसको ले कैसे
जायेंगे। कितने ढेर गुरू लोग हैं, कितने उन्हों के फालोअर्स बनते हैं। सच्चा-सच्चा
सतगुरू है शिवबाबा। उसको तो चरण हैं नहीं। वह कहते हैं हमको तो चरण हैं नहीं। मैं
कैसे अपने को पुजवाऊं। बच्चे विश्व के मालिक बनते हैं, उनसे थोड़ेही पुजवाऊंगा।
भक्ति मार्ग में बच्चे बाप के पांव पड़ते हैं। वास्तव में तो बाप की प्रापर्टी के
मालिक बच्चे हैं। परन्तु नम्रता दिखलाते हैं। छोटे बच्चे आदि सब जाकर पांव पड़ते
हैं। यहाँ बाप कहते हैं तुमको पांव पड़ने से भी छुड़ा देता हूँ। कितना बड़ा बाप है।
कहते हैं तुम बच्चे मेरे मददगार हो। तुम मददगार नहीं होते तो हम स्वर्ग की स्थापना
कैसे करते। बाप समझाते हैं - बच्चे, अभी तुम मददगार बनो फिर हम तुमको ऐसा बनाते हैं
जो कोई की मदद लेने की दरकार ही नहीं रहेगी। तुमको कोई के राय की भी दरकार नहीं
रहेगी। यहाँ बाप बच्चों की मदद ले रहे हैं। कहते हैं - बच्चे, अब छी-छी मत बनो। माया
से हार नहीं खाओ। नहीं तो नाम बदनाम कर देते हैं। बॉक्सिंग होती है तो उसमें जब कोई
जीतते हैं तो वाह-वाह हो जाती है। हार खाने वाले का मुँह पीला हो जाता है। यहाँ भी
हार खाते हैं। यहाँ हार खाने वाले को कहा जाता है - काला मुँह कर दिया। आये हैं गोरा
बनने के लिए फिर क्या कर देते हैं। की कमाई सारी चट हो जाती है, फिर नये सिर शुरू
करना पड़े। बाप के मददगार बन फिर हार खाए नाम बदनाम कर देते हैं। दो पार्टी हैं। एक
हैं माया के मुरीद, एक हैं ईश्वर के। तुम बाप को प्यार करते हो। गायन भी है विनाश
काले विपरीत बुद्धि। तुम्हारी है प्रीत बुद्धि। तो तुमको नाम बदनाम थोड़ेही करना
है। तुम प्रीत बुद्धि फिर माया से हार क्यों खाते हो। हारने वाले को दु:ख होता है।
जीतने वाले पर ताली बजाते वाह-वाह करते हैं। तुम बच्चे समझते हो हम तो पहलवान हैं।
अब माया को जीतना जरूर है। बाप कहते हैं देह सहित जो कुछ देखते हो, उन सबको भूल जाओ।
मामेकम् याद करो। माया ने तुमको सतोप्रधान से तमोप्रधान बना दिया है। अब फिर
सतोप्रधान बनना है। माया जीते जगतजीत बनना है। यह है ही हार और जीत, सुख दु:ख का
खेल। रावण राज्य में हार खाते हैं। अब बाप फिर वर्थ पाउण्ड बनाते हैं। बाबा ने
समझाया है - एक शिवबाबा की जयन्ती ही वर्थ पाउण्ड है। अब तुम बच्चों को ऐसा
लक्ष्मी-नारायण बनना है। वहाँ पर घर-घर में दीपमाला रहती है, सबकी ज्योत जग जाती
है। मेन पावर से ज्योत जगती है। बाबा कितना सहज रीति बैठ समझाते हैं। बाप के सिवाए
मीठे-मीठेलाडले सिकीलधे बच्चे कौन कहेगा। रूहानी बाप ही कहते हैं - हे मेरे
मीठेलाडले बच्चों, तुम आधाकल्प से भक्ति करते आये हो। वापिस एक भी जा नहीं सकते।
बाप ही आकर सबको ले जाते हैं।
तुम संगमयुग पर अच्छी रीति समझा सकते हो। बाप कैसे आकर सब आत्माओं को ले जाते
हैं। दुनिया में इस बेहद के नाटक का कोई को पता नहीं है, यह बेहद का ड्रामा है। यह
भी तुम समझते हो, और कोई कह न सके। अगर बोले बेहद का ड्रामा है तो फिर ड्रामा का
वर्णन कैसे करेंगे। यहाँ तुम 84 के चक्र को जानते हो। तुम बच्चों ने जाना है, तुमको
ही याद करना है। बाप कितना सहज बतलाते हैं। भक्ति मार्ग में तुम कितने धक्के खाते
हो। तुम कितना दूर स्नान करने जाते हो। एक लेक है कहते हैं उसमें डुबकी लगाने से
परियां बन जाते हैं। अभी तुम ज्ञान सागर में डुबकी मार परीज़ादा बन जाते हो। कोई
अच्छा फैशन करते हैं तो कहते हैं यह तो जैसे परी बन गई है। अभी तुम भी रत्न बनते
हो। बाकी मनुष्य को उड़ने के पंख आदि हो नहीं सकते। ऐसे उड़ न सकें। उड़ने वाली है
ही आत्मा। आत्मा जिसको रॉकेट भी कहते हैं, आत्मा कितनी छोटी है। जब सब आत्मायें
जायेंगी तो हो सकता है तुम बच्चों को साक्षात्कार भी हो। बुद्धि से समझ सकते हो -
यहाँ तुम वर्णन कर सकते हो, हो सकता है जैसे विनाश देखा जाता है वैसे आत्माओं का
झुण्ड भी देख सकते हैं कि कैसे जाते हैं। हनूमान, गणेश आदि तो हैं नहीं। परन्तु उनका
भावना अनुसार साक्षात्कार हो जाता है। बाबा तो है ही बिन्दी, उनका क्या वर्णन करेंगे।
कहते भी हैं छोटा सा स्टार है जिसको इन आंखों से देख नहीं सकते। शरीर कितना बड़ा
है, जिससे कर्म करना है। आत्मा कितनी छोटी है उसमें 84 का चक्र नूँधा हुआ है। एक भी
मनुष्य नहीं होगा जिसको यह बुद्धि में हो कि हम 84 जन्म कैसे लेते हैं। आत्मा में
कैसे पार्ट भरा हुआ है। वण्डर है। आत्मा ही शरीर लेकर पार्ट बजाती है। वह होता है
हद का नाटक, यह है बेहद का। बेहद का बाप खुद आकर अपना परिचय देते हैं। जो अच्छे
सर्विसएबुल बच्चे हैं, वह विचार सागर मंथन करते रहते हैं। किसको कैसे समझायें। कितना
तुम एक-एक से माथा मारते हो। फिर भी कहते हैं बाबा हम समझते ही नहीं। कोई नहीं पढ़ते
हैं तो कहा जाता है यह तो पत्थर बुद्धि हैं। तुम देखते हो यहाँ भी कोई 7 रोज़ में
ही बहुत खुशी में आकर कहते हैं - बाबा पास चलें। कोई तो कुछ भी नहीं समझते। मनुष्य
तो सिर्फ कह देते हैं पत्थरबुद्धि, पारसबुद्धि, परन्तु अर्थ नहीं जानते। आत्मा
पवित्र बनती है तो पारसनाथ बन जाती है। पारसनाथ का मन्दिर भी है। सारा सोने का
मन्दिर नहीं होता है। ऊपर में थोड़ा सोना लगा देते हैं। तुम बच्चे जानते हो हमको
बागवान मिला है, कांटे से फूल बनने की युक्ति बतलाते हैं। गायन भी है ना गार्डन ऑफ
अल्लाह। तुम्हारे पास शुरू में एक मुसलमान ध्यान में जाता था - कहता था खुदा ने हमको
फूल दिया। खड़े-खड़े गिर पड़ता था, खुदा का बगीचा देखता था। अब खुदा का बगीचा दिखाने
वाला तो खुद ही खुदा होगा। और कोई कैसे दिखलायेंगे। तुमको वैकुण्ठ का साक्षात्कार
कराते हैं। खुदा ही ले जाते हैं। खुद तो वहाँ रहते नहीं। खुदा तो शान्तिधाम में रहते
हैं। तुमको वैकुण्ठ का मालिक बनाते हैं। कितनी अच्छी-अच्छी बातें तुम समझते हो। खुशी
होती है। अन्दर में बहुत खुशी होनी चाहिए - अभी हम सुखधाम में जाते हैं। वहाँ दु:ख
की बात नहीं होती। बाप कहते हैं सुखधाम, शान्तिधाम को याद करो। घर को क्यों नहीं
याद करेंगे। आत्मा घर जाने के लिए कितना माथा मारती है। जप तप आदि बहुत मेहनत करती
है परन्तु जा कोई भी नहीं सकते। झाड़ से नम्बरवार आत्मायें आती रहती हैं फिर बीच
में जा कैसे सकती। जबकि बाप ही यहाँ है। तुम बच्चों को रोज़ समझाते रहते हैं -
शान्तिधाम और सुखधाम को याद करो। बाप को भूलने के कारण ही फिर दु:खी होते हैं। माया
का मोचरा लग जाता है। अब तो ज़रा भी मोचरा नहीं खाना है। मूल है देह-अभिमान।
तुम अभी तक जिस बाप को याद करते रहते थे - हे पतित-पावन आओ, उस बाप से तुम पढ़
रहे हो। तुम्हारा ओबीडियन्ट सर्वेन्ट टीचर भी है। ओबीडियन्ट सर्वेन्ट बाप भी है। बड़े
आदमी नीचे हमेशा लिखते हैं ओबीडियन्ट सर्वेन्ट। बाप कहते हैं मैं तुम बच्चों को देखो
कैसे बैठ समझाता हूँ। सपूत बच्चों पर ही बाप का प्यार होता है, जो कपूत होते हैं
अर्थात् बाप का बनकर फिर ट्रेटर बन जाते हैं, विकार में चले जाते हैं तो बाप कहेंगे
ऐसा बच्चा तो नहीं जन्मता तो अच्छा था। एक के कारण कितना नाम बदनाम हो जाता है।
कितने को तकलीफ होती है। यहाँ तुम कितना ऊंच काम कर रहे हो। विश्व का उद्धार कर रहे
हो और तुमको 3 पैर पृथ्वी के भी नहीं मिलते हैं। तुम बच्चे किसी का घरबार तो छुड़ाते
नहीं हो। तुम तो राजाओं को भी कहते हो - तुम पूज्य डबल सिरताज थे, अब पुजारी बन पड़े
हो। अब बाप फिर से पूज्य बनाते हैं तो बनना चाहिए ना। थोड़ी देरी है। हम यहाँ किसके
लाख लेकर क्या करेंगे। गरीबों को राजाई मिलनी है। बाप गरीब निवाज़ है ना। तुम अर्थ
सहित समझते हो कि बाप को गरीब निवाज़ क्यों कहते हैं! भारत भी कितना गरीब है, उनमें
भी तुम गरीब मातायें हो। जो साहूकार हैं वह इस ज्ञान को उठा न सकें। गरीब अबलायें
कितनी आती हैं, उन पर अत्याचार होते हैं। बाप कहते हैं माताओं को आगे बढ़ाना है।
प्रभातफेरी में भी पहले-पहले मातायें हो। बैज भी तुम्हारे फर्स्टक्लास हैं। यह
ट्रांसलाइट का चित्र तुम्हारे आगे हो। सबको सुनाओ दुनिया बदल रही है। बाप से वर्सा
मिल रहा है कल्प पहले मुआफिक। बच्चों को विचार सागर मंथन करना है - कैसे सर्विस को
अमल में लायें। टाइम तो लगता है ना। अच्छा!
मीठे-मीठेसिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप से पूरी-पूरी प्रीत रख मददगार बनना है। माया से हार खाकर कभी नाम
बदनाम नहीं करना है। पुरुषार्थ कर देह सहित जो कुछ दिखाई देता है उसे भूल जाना है।
2) अन्दर में खुशी रहे कि हम अभी शान्तिधाम, सुखधाम जाते हैं। बाबा ओबीडियन्ट
टीचर बन हमको घर ले जाने के लायक बनाते हैं। लायक, सपूत बनना है, कपूत नहीं।
वरदान:-
हर संकल्प,
समय, वृत्ति और कर्म द्वारा सेवा करने वाले निरन्तर सेवाधारी भव
जैसे बाप अति प्यारा लगता
है बाप के बिना जीवन नहीं, ऐसे ही सेवा के बिना जीवन नहीं। निरन्तर योगी के साथ-साथ
निरन्तर सेवाधारी बनो। सोते हुए भी सेवा हो। सोते समय यदि कोई आपको देखे तो आपके
चेहरे से शान्ति, आनंद के वायब्रेशन अनुभव करे। हर कर्मेन्द्रिय द्वारा बाप के याद
की स्मृति दिलाने की सेवा करते रहो। अपनी पावरफुल वृत्ति द्वारा वायब्रेशन फैलाते
रहो, कर्म द्वारा कर्मयोगी भव का वरदान देते रहो, हर कदम में पदमों की कमाई जमा करते
रहो तब कहेंगे निरन्तर सेवाधारी अर्थात् सर्विसएबल।
स्लोगन:-
अपनी
रूहानी पर्सनालिटी को स्मृति में रखो तो मायाजीत बन जायेंगे।
अव्यक्त इशारे -
स्वयं और सर्व के प्रति मन्सा द्वारा योग की शक्तियों का प्रयोग करो
जैसे वाणी की
प्रैक्टिस करते-करते वाणी के शक्तिशाली हो गये हो, ऐसे शान्ति की शक्ति के भी
अभ्यासी बनते जाओ। आगे चल वाणी वा स्थूल साधनों के द्वारा सेवा का समय नहीं मिलेगा।
ऐसे समय पर शान्ति की शक्ति के साधन आवश्यक होंगे क्योंकि जितना जो महान् शक्तिशाली
होता है वह अति सूक्ष्म होता है। तो वाणी से शुद्ध-संकल्प सूक्ष्म हैं इसलिए
सूक्ष्म का प्रभाव शक्तिशाली होगा।