26-10-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 15.10.2007 "बापदादा" मधुबन
“संगमयुग की
जीवनमुक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए सब बोझ वा बंधन बाप को देकर डबल लाइट बनो''
आज विश्व रचता बापदादा
अपनी पहली रचना अति लवली और लक्की बच्चों से मिलन मेला मना रहा है। कई बच्चे सम्मुख
हैं, नयनों से देख रहे हैं और चारों ओर के कई बच्चे दिल में समाये हुए हैं। बापदादा
हर बच्चे के मस्तक में तीन भाग्य के तीन सितारे चमकते हुए देख रहे हैं। एक भाग्य है
- बापदादा की श्रेष्ठ पालना का, दूसरा है शिक्षक द्वारा पढ़ाई का, तीसरा है सतगुरू
द्वारा सर्व वरदानों का चमकता हुआ सितारा। तो आप सब भी अपने मस्तक पर चमकते हुए
सितारे अनुभव कर रहे हो ना! सर्व सम्बन्ध बापदादा से हैं फिर भी जीवन में यह तीन
सम्बन्ध आवश्यक हैं और आप सभी सिकीलधे लाडले बच्चों को सहज ही प्राप्त हैं। प्राप्त
हैं ना! नशा है ना! दिल में गीत गाते रहते हैं ना - वाह! बाबा वाह! वाह! शिक्षक वाह!
वाह! सतगुरू वाह! दुनिया वाले तो लौकिक गुरू जिसको महान आत्मा कहते हैं, उस द्वारा
एक वरदान पाने के लिए भी कितना प्रयत्न करते हैं और आपको बाप ने जन्मते ही सहज
वरदानों से सम्पन्न कर दिया। इतना श्रेष्ठ भाग्य क्या स्वप्न में भी सोचा था कि
भगवान बाप इतना हमारे ऊपर बलिहार जायेगा! भक्त लोग भगवान के गीत गाते हैं और भगवान
बाप किसके गीत गाते? आप लक्की बच्चों के।
अभी भी आप सभी
भिन्न-भिन्न देशों से किस विमान में आये हो? स्थूल विमानों में कि परमात्म प्यार के
विमान में सब तरफ से पहुंच गये हैं! परमात्म विमान कितना सहज ले आता है, कोई तकलीफ
नहीं। तो सभी परमात्म प्यार के विमान में पहुंच गये हो इसकी मुबारक हो, मुबारक हो,
मुबारक हो। बापदादा एक एक बच्चे को देख चाहे पहली बार आये हैं, चाहे बहुतकाल से आ
रहे हैं। लेकिन बापदादा एक-एक बच्चे की विशेषता को जानते हैं। बापदादा का कोई भी
बच्चा चाहे छोटा है, चाहे बड़ा है, चाहे महावीर है, चाहे पुरुषार्थी है, लेकिन हर
एक बच्चा सिकीलधा है, क्यों? आपने तो बाप को ढूंढा, मिला नहीं, लेकिन बापदादा ने आप
हर बच्चे को बहुत प्यार, सिक, स्नेह से कोने-कोने से ढूंढा है। तो प्यारे हैं तब तो
ढूंढा क्योंकि बाप जानते हैं मेरा कोई एक भी बच्चा ऐसा नहीं है जिसमें कोई भी
विशेषता नहीं हो। कोई विशेषता ने ही लाया है। कम से कम गुप्त रूप में आये हुए बाप
को पहचान तो लिया। मेरा बाबा कहा, सब कहते हो ना मेरा बाबा! कोई है जो कहता है नहीं
तेरा बाबा, कोई है? सब कहते हैं मेरा बाबा। तो विशेष हैं ना। इतने बड़े बड़े
साइन्सदान, बड़े बड़े वी.आई.पी. पहचान नहीं सके, लेकिन आप सबने तो पहचान लिया ना।
अपना बना लिया ना। तो बाप ने भी अपना बना लिया। इसी खुशी में पलते हुए उड़ रहे हो
ना! उड़ रहे हो, चल नहीं रहे हो, उड़ रहे हो क्योंकि चलने वाले बाप के साथ अपने घर
में जा नहीं सकेंगे क्योंकि बाप तो उड़ने वाले हैं, तो चलने वाले कैसे साथ पहुंचेंगे!
इसलिए बाप सभी बच्चों को क्या वरदान देते हैं? फरिश्ता स्वरूप भव। फरिश्ता उड़ता
है, चलता नहीं है, उड़ता है। तो आप सभी भी उड़ती कला वाले हो ना! हो? हाथ उठाओ जो
उड़ती कला वाले हैं, कि कभी चलती कला, कभी उड़ती कला? नहीं? सदा उड़ने वाले, डबल
लाइट हो ना! क्यों?सोचो, बाप ने आप सभी से गैरन्टी ली है कि जो भी किसी भी प्रकार
का बोझ अगर मन में, बुद्धि में है तो बाप को दे दो, बाप लेने ही आये हैं। तो बाप को
बोझ दिया है या थोड़ा-थोड़ा सम्भाल के रखा है? जब लेने वाला ले रहा है, तो बोझ देने
में भी सोचने की बात है क्या? या 63 जन्म की आदत है बोझ सम्भालने की? तो कई बच्चे
कभी कभी कहते हैं चाहते नहीं हैं, लेकिन आदत से मजबूर हैं। अभी तो मजबूर नहीं हो
ना! मजबूर हो कि मजबूत हो? मजबूर कभी नहीं बनना। मजबूत हैं। शक्तियां मजबूत हो या
मजबूर? मजबूत हैं ना? बोझ रखना अच्छा लगता है क्या? बोझ से दिल लग गई है क्या? छोड़ो,
छोड़ो तो छूटो। छोड़ते नहीं हैं तो छूटते नहीं हैं। छोड़ने का साधन है - दृढ़
संकल्प। कई बच्चे कहते हैं दृढ़ संकल्प तो करते हैं, लेकिन, लेकिन.... कारण क्या
है? दृढ़ संकल्प करते हो लेकिन किये हुए दृढ़ संकल्प को रिवाइज़ नहीं करते हो।
बार-बार मन से रिवाइज़ करो और रियलाइज़ करो, बोझ क्या और डबल लाइट का अनुभव क्या!
रियलाइजेशन का कोर्स अभी थोड़ा aऔर अण्डरलाइन करो। कहना और सोचना यह करते हो, लेकिन
दिल से रियलाइज करो - बोझ क्या है और डबल लाइट क्या होता है? अन्तर सामने रखो
क्योंकि बापदादा अभी समय की समीपता प्रमाण हर एक बच्चे में क्या देखने चाहते हैं?
जो कहते हैं वह करके दिखाना है। जो सोचते हो वह स्वरूप में लाना है क्योंकि बाप का
वर्सा है, जन्म सिद्ध अधिकार है मुक्ति और जीवनमुक्ति। सभी को निमंत्रण भी यही देते
हो ना तो आकर मुक्ति जीवनमुक्ति का वर्सा प्राप्त करो। तो अपने से पूछो क्या
मुक्तिधाम में मुक्ति का अनुभव करना है वा सतयुग में जीवनमुक्ति का अनुभव करना है
वा अब संगमयुग में मुक्ति, जीवनमुक्ति का संस्कार बनाना है? क्योंकि आप कहते हो कि
हम अभी अपने ईश्वरीय संस्कार से दैवी संसार बनाने वाले हैं। अपने संस्कार से नया
संसार बना रहे हैं। तो अब संगम पर ही मुक्ति जीवनमुक्ति के संस्कार इमर्ज चाहिए ना!
तो चेक करो सर्व बंधनों से मन और बुद्धि मुक्त हुए हैं? क्योंकि ब्राह्मण जीवन में
कई बातों से जो पास्ट लाइफ के बन्धन हैं, उससे मुक्त हुए हो। लेकिन सर्व बन्धनों से
मुक्त हैं या कोई कोई बंधन अभी भी अपने बन्धन में बांधता है? इस ब्राह्मण जीवन में
मुक्ति जीवनमुक्ति का अनुभव करना ही ब्राह्मण जीवन की श्रेष्ठता है क्योंकि सतयुग
में जीवनमुक्त, जीवनबंध दोनों का ज्ञान ही नहीं होगा। अभी अनुभव कर सकते हो,
जीवनबंध क्या है,जीवनमुक्त क्या है, क्योंकि आप सबका वायदा है, अनेक बार वायदा किया
है, क्या करते हो वायदा? याद है? किसी से भी पूछते हैं आपके इस ब्राह्मण जीवन का
लक्ष्य क्या है? क्या जवाब देते हो? बाप समान बनना है। पक्का है ना? बाप समान बनना
है ना? या थोड़ा थोड़ा बनना है? समान बनना है ना! समान बनना है या थोड़ा भी बन गये
तो चलेगा! चलेगा? उसको समान तो नहीं कहेंगे ना। तो बाप मुक्त है, या बंधन है? अगर
किसी भी प्रकार का चाहे देह का, चाहे कोई देह के सम्बन्ध, माता पिता बंधु सखा नहीं,
देह के साथ जो कर्मेन्द्रियों का सम्बन्ध है, उस कोई भी कर्मेन्द्रियों के सम्बन्ध
का बंधन है, आदत का बंधन है, स्वभाव का बंधन है, पुराने संस्कार का बंधन है, तो बाप
समान कैसे हुए? और रोज़ वायदा करते हो बाप समान बनना ही है। हाथ उठवाते हैं तो सभी
क्या कहते हैं? लक्ष्मी नारायण बनना है। बापदादा को खुशी होती है,वायदा बहुत अच्छे
अच्छे करते हैं लेकिन वायदे का फायदा नहीं उठाते हैं। वायदा और फायदा का बैलेन्स नहीं
जानते। वायदों का फाइल बापदादा के पास बहुत-बहुत-बहुत बड़ा है, सभी का फाइल है। ऐसे
ही फायदे का भी फाइल हो, बैलेन्स हो, तो कितना अच्छा लगेगा।
यह सेन्टर्स की
टीचर्स बैठीहै ना। यह भी सेन्टर निवासी बैठेहैं ना? तो समान बनने वाले हुए ना।
सेन्टर निवासी निमित्त बने हुए बच्चे तो समान चाहिए ना! हैं? हैं भी लेकिन कभी-कभी
थोड़ा नटखट हो जाते हैं। बापदादा तो सभी बच्चों का सारे दिन का हाल और चाल दोनों
देखते रहते हैं। आपकी दादी भी वतन में थी ना, तो दादी भी देखती थी तो क्या कहती थी,
पता है? कहती थी बाबा ऐसा भी है क्या? ऐसा होता है, ऐसे करते हैं, आप देखते रहते
हैं? सुना, आपकी दादी ने क्या देखा। अभी बापदादा यही देखने चाहते हैं कि एक-एक बच्चा
मुक्ति जीवनमुक्ति के वर्से का अधिकारी बने, क्योंकि वर्सा अभी मिलता है। सतयुग में
तो नेचुरल लाइफ होगी, अभी के अभ्यास की नेचुरल लाइफ, लेकिन वर्से का अधिकार अभी
संगम पर है इसीलिए बापदादा यही चाहते हैं कि हर एक स्वयं चेक करे, अगर कोई भी बंधन
खींचता है, तो कारण सोचो। कारण सोचो और कारण के साथ निवारण भी सोचो। निवारण बापदादा
ने अनेक बार भिन्न-भिन्न रूप से दे दिये हैं। सर्वशक्तियों का वरदान दिया है,
सर्वगुणों का खजाना दिया है, खजाने को यूज़ करने से खजाना बढ़ता है। खजाना सबके पास
है, बापदादा ने देखा है। हर एक के स्टॉक को भी देखता है। बुद्धि है स्टॉक रूम। तो
बापदादा ने सबका स्टॉक देखा है। स्टॉक में है लेकिन खजाने को समय पर यूज़ नहीं करते
हैं। सिर्फ प्वाइंट के रूप से सोचते हैं, हाँ यह नहीं करना है, यह करना है, प्वाइंट
के रूप से यूज़ करते हैं, सोचते हैं लेकिन प्वाइंट बनके प्वाइंट को यूज़ नहीं करते
हैं इसीलिए प्वाइंट रह जाती है, प्वाइंट बनके यूज़ करो तो निवारण हो जाए। बोलते भी
हैं, यह नहीं करना है, फिर भूलते भी हैं। बोलने के साथ भूलते भी हो। इतना सहज विधि
सुनाई है, सिर्फ है ही संगमयुग में बिन्दी की कमाल, बस बिन्दी यूज़ करो और कोई
मात्रा की आवश्यकता नहीं। तीन बिन्दी को यूज़ करो। आत्मा बिन्दी, बाप बिन्दी और
ड्रामा बिन्दी। तीन बिन्दी यूज़ करते रहो तो बाप समान बनना कोई मुश्किल नहीं। लगाने
चाहते हो बिन्दी लेकिन लगाने के समय हाथ हिल जाता, तो क्वेश्चन मार्क हो जाता या
आश्चर्य की रेखा बन जाती है। वहाँ हाथ हिलता, यहाँ बुद्धि हिलती है। नहीं तो तीन
बिन्दी को स्मृति में रखना क्या मुश्किल है? बापदादा ने तो दूसरी भी सहज युक्ति
बताई है, वह क्या? दुआ दो और दुआ लो। अच्छा, योग शक्तिशाली नहीं लगता, धारणायें थोड़ी
कम होती हैं, भाषण करने की हिम्मत नहीं होती है, लेकिन दुआ दो और दुआ लो, एक ही बात
करो और सब छोड़ो, एक बात करो, दुआ लेनी है दुआ देनी है। कुछ भी हो जाए, कोई कुछ भी
दे लेकिन मुझे दुआ देनी है, लेनी है। एक बात तो पक्की करो, इसमें सब आ जायेगा। अगर
दुआ देंगे और दुआ लेंगे तो क्या इसमें शक्तियां और गुण नहीं आयेंगे? आटोमेटिकली आ
जायेंगे ना! एक ही लक्ष्य रखो, करके देखो, एक दिन अभ्यास करके देखो, फिर सात दिन
करके देखो, चलो और बातें बुद्धि में नहीं आती, एक तो आयेगी। कुछ भी हो जाए लेकिन
दुआ देनी और लेनी है। यह तो कर सकते हैं या नहीं? कर सकते हैं? अच्छा, तो जब भी जाओ
ना तो यह ट्रायल करना। इसमें सब योगयुक्त आपेही हो जायेंगे क्योंकि वेस्ट कर्म
करेंगे नहीं तो योगयुक्त हो ही गये ना। लेकिन लक्ष्य रखो दुआ देना है, दुआ लेना है।
कोई कुछ भी देवे, बददुआ भी मिलेगी,क्रोध की बातें भी आयेंगी क्योंकि वायदा करेंगे
ना, तो माया भी सुन रही है, कि यह वायदा करेंगे, वह भी अपना काम तो करेगी ना। जब
मायाजीत बन जायेंगे फिर नहीं करेंगी, अभी तो मायाजीत बन रहे हैं ना, तो वह अपना काम
करेगी लेकिन मुझे दुआ देनी है और दुआ लेनी है। हो सकता है? हाथ उठाओ जो कहते हैं हो
सकता है। अच्छा, शक्तियां हाथ उठाओ। हाँ,हो सकता है? सब तरफ की टीचर्स आई हैं ना।
तो जब आप अपने देश में जाओ तो पहले-पहले सभी को एक सप्ताह यह होमवर्क करना है और
रिजल्ट भेजनी है, कितने जने क्लास के मेम्बर कितने हैं, कितने ओ.के. हैं और कितने
थोड़े कच्चे और कितने पक्के हैं, तो ओ.के. के बीच में लाइन लगाना बस ऐसे समाचार देना।
इतने जने ओ.के., इतने जनों में ओ.के. में लकीर लगी है। इसमें देखो डबल फारेनर्स आये
हैं तो डबल काम करेंगे ना। एक सप्ताह की रिजल्ट भेजना फिर बापदादा देखेंगे, सहज है
ना, मुश्किल तो नहीं है। माया आयेगी, आप कहेंगे बाबा मेरे को पहले तो ऐसा संकल्प कभी
नहीं आता था, अभी आ गया, यह होगा, लेकिन दृढ़ निश्चय वाले की निश्चित विजय है।
दृढ़ता का फल है सफलता। सफलता न होने का कारण है दृढ़ता की कमी। तो दृढ़ता की सफलता
प्राप्त करनी ही है।
जैसे सेवा
उमंग-उत्साह से कर रहे हैं ऐसे स्वयं की, स्व के प्रति सेवा, स्व सेवा और विश्व सेवा,
स्व सेवा अर्थात् चेक करना और अपने को बाप समान बनाना। कोई भी कमी, कमजोरी बाप को
दे दो ना, क्यों रखी है, बाप को अच्छा नहीं लगता है। क्यों कमजोरी रखते हो? दे दो।
देने के टाइम छोटे बच्चे बन जाओ। जैसे छोटा बच्चा कोई भी चीज़ सम्भाल नहीं सकता,
कोई भी चीज पसन्द नहीं आती है तो क्या करता है? मम्मी पापा यह आप ले लो। ऐसे ही कोई
भी प्रकार का बोझ, बंधन जो अच्छा नहीं लगता, क्योंकि बापदादा देखता है, एक तरफ यह
सोच रहे हैं, है तो अच्छा नहीं, ठीक तो नहीं है लेकिन क्या करूं, कैसे करूं.... तो
यह तो अच्छा नहीं है। एक तरफ अच्छा नहीं है कह रहे हैं, दूसरे तरफ सम्भाल के रख रहे
हैं, तो इसको क्या कहें! अच्छा कहें? अच्छा तो नहीं है ना। तो आपको क्या बनना है?
अच्छे ते अच्छा ना। अच्छा भी नहीं, अच्छे ते अच्छा। तो जो भी कोई ऐसी बात हो, बाबा
हाज़िरा हज़ूर है, उसको दे दो, और अगर वापस आवे तो अमानत समझके फिर दे दो। अमानत
में ख्यानत नहीं की जाती है क्योंकि आपने तो दे दी, तो बाप की चीज़ हो गई, बाप की
चीज़ या दूसरे की चीज़ आपके पास गलती से आ जाए, आप अलमारी में रख देंगे? रख देंगे?
निकालेंगे ना। कैसे भी करके निकालेंगे, रखेंगे नहीं। सम्भालेंगे तो नहीं ना। तो दे
दो। बाप लेने के लिए आया है। और तो कुछ आपके पास है नहीं जो दो। लेकिन यह तो दे सकते
हो ना। अक के फूल हैं, वह दे दो। सम्भालना अच्छा लगता है क्या? अच्छा।
चारों ओर के सभी
बापदादा के दिल पसन्द बच्चे, दिलाराम है ना, तो दिलाराम के दिल पसन्द बच्चे, प्यार
के अनुभवों में सदा लहराने वाले बच्चे, एक बाप दूसरा न कोई, स्वप्न में भी दूसरा न
कोई, ऐसे बापदादा के अति प्यारे और अति देहभान से न्यारे, सिकीलधे, पदमगुणा
भाग्यशाली बच्चों को दिल का यादप्यार और पदम-पदमगुणा दुआयें हों, साथ में बालक सो
मालिक बच्चों को बापदादा का नमस्ते।
वरदान:-
ईश्वरीय
मर्यादाओं के आधार पर विश्व के आगे एग्जाम्पल बनने वाले सहजयोगी भव
विश्व के आगे
एग्जाम्पल बनने के लिए अमृतवेले से रात तक जो ईश्वरीय मर्यादायें हैं उसी प्रमाण
चलते रहो। विशेष अमृतवेले के महत्व को जानकर उस समय पावरफुल स्टेज बनाओ तो सारे दिन
की जीवन महान बन जायेगी। जब अमृतवेले विशेष बाप से शक्ति भर लेंगे तो शक्ति स्वरूप
हो चलने से किसी भी कार्य में मुश्किल का अनुभव नहीं होगा और मर्यादा पूर्वक जीवन
बिताने से सहजयोगी की स्टेज भी स्वत: बन जायेगी फिर विश्व आपके जीवन को देखकर अपनी
जीवन बनायेगी।
स्लोगन:-
अपनी चलन और चेहरे से पवित्रता की श्रेष्ठता का अनुभव कराओ।
अव्यक्त इशारे - स्वयं
और सर्व के प्रति मन्सा द्वारा योग की शक्तियों का प्रयोग करो
प्रयोगी आत्मा
संस्कारों के ऊपर, प्रकृति द्वारा आने वाली परिस्थितियों पर और विकारों पर सदा विजयी
होगी। योगी वा प्रयोगी आत्मा के आगे ये पांच विकार रूपी सांप गले की माला अथवा खुशी
में नाचने की स्टेज बन जाते हैं।