02-06-2025        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - याद में रहो तो दूर होते भी साथ में हो, याद से साथ का भी अनुभव होता है और विकर्म भी विनाश होते हैं''

प्रश्नः-
दूरदेशी बाप बच्चों को दूरांदेशी बनाने के लिए कौन-सा ज्ञान देते हैं?

उत्तर:-
आत्मा कैसे चक्र में भिन्न-भिन्न वर्णों में आती है, इसका ज्ञान दूरांदेशी बाप ही देते हैं। तुम जानते हो अभी हम ब्राह्मण वर्ण के हैं इसके पहले जब ज्ञान नहीं था तो शूद्र वर्ण के थे, उसके पहले वैश्य..... वर्ण के थे। दूरदेश में रहने वाला बाप आकर यह दूरांदेशी बनने का सारा ज्ञान बच्चों को देते हैं।

गीत:-
जो पिया के साथ है.....

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) जीते जी देह-अभिमान से गलने का पुरुषार्थ करना है। इस पुरानी जुत्ती में ज़रा भी ममत्व न रहे।

2) सच्चा ब्राह्मण बन कीड़ों पर ज्ञान की भूँ-भूँ कर उन्हें आप समान ब्राह्मण बनाना है।

वरदान:-
अमृतवेले का महत्व जानकर खुले भण्डार से अपनी झोली भरपूर करने वाले तकदीरवान भव

अमृतवेले वरदाता, भाग्य विधाता से जो तकदीर की रेखा खिंचवाने चाहो खिंचवा लो क्योंकि उस समय भोले भगवान के रूप में लवफुल हैं इसलिए मालिक बनो और अधिकार लो। खजाने पर कोई भी ताला-चाबी नहीं है। उस समय सिर्फ माया के बहाने बाज़ी को छोड़ एक संकल्प करो कि जो भी हूँ, जैसी भी हूँ, आपकी हूँ। मन बुद्धि बाप के हवाले कर तख्तनशीन बन जाओ तो बाप के सर्व खजाने अपने खजाने अनुभव होंगे।

स्लोगन:-
सेवा में यदि स्वार्थ मिक्स है तो सफलता भी मिक्स हो जायेगी इसलिए नि:स्वार्थ सेवाधारी बनो।

अव्यक्त इशारे-आत्मिक स्थिति में रहने का अभ्यास करो, अन्तर्मुखी बनो

ऐसा कोई भी ब्राह्मण नहीं होगा जो आत्म-अभिमानी बनने का पुरुषार्थी न हो। लेकिन निरन्तर आत्म-अभिमानी, जिससे कर्मेन्द्रियों के ऊपर सम्पूर्ण विजय हो जाए, हरेक कर्मेन्द्रिय सतोप्रधान स्वच्छ हो जाए, देह के पुराने संस्कार और सम्बन्ध से सम्पूर्ण मरजीवा हो जाए, इसके लिए अन्तर्मुखी बनो, इसी पुरुषार्थ से ही नम्बर बनेंगे।