04-08-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - बाबा आये
हैं तुम्हें किंग ऑफ फ्लावर बनाने, इसलिए विकारों की कोई भी बदबू नहीं होनी चाहिए''
प्रश्नः-
विकारों का
अंश समाप्त करने के लिए कौन-सा पुरुषार्थ करना है?
उत्तर:-
निरन्तर
अन्तर्मुखी रहने का पुरुषार्थ करो। अन्तर्मुख अर्थात् सेकण्ड में शरीर से डिटैच। इस
दुनिया की सुध-बुध बिल्कुल भूल जाए। एक सेकण्ड में ऊपर जाना और आना। इस अभ्यास से
विकारों का अंश समाप्त हो जायेगा। कर्म करते-करते बीच-बीच में अन्तर्मुखी हो जाओ,
ऐसा लगे जैसे बिल्कुल सन्नाटा है। कोई भी चुरपुर नहीं। यह सृष्टि तो जैसे है ही नहीं।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अविनाशी ज्ञान धन स्वयं में धारण कर फिर दान करना है। पढ़ाई से अपने
आपको स्वयं ही राज तिलक देना है। जैसे बाप कल्याणकारी है वैसे कल्याणकारी बनना है।
2) खाने-पीने की पूरी-पूरी परहेज रखनी है। कभी भी आंखें धोखा न दें - यह सम्भाल
करनी है। अपने को सुधारना है। कर्मेन्द्रियों से कोई भी विकर्म नहीं करना है।
वरदान:-
मन्सा शक्ति
के अनुभव द्वारा विशाल कार्य में सदा सहयोगी भव
प्रकृति को, तमोगुणी
आत्माओं के वायब्रेशन को परिवर्तन करना तथा खूने नाहेक वायुमण्डल, वायब्रेशन में
स्वयं को सेफ रखना, अन्य आत्माओं को सहयोग देना, नई सृष्टि में नई रचना का योगबल से
प्रारम्भ करना - इन सब विशाल कार्यों के लिए मन्सा शक्ति की आवश्यकता है। मन्सा
शक्ति द्वारा ही स्वयं की अन्त सुहानी होगी। मन्सा शक्ति अर्थात् श्रेष्ठ संकल्प
शक्ति, एक के साथ लाइन क्लीयर - अभी इसके अनुभवी बनो तब बेहद के कार्य में सहयोगी
बन बेहद विश्व के राज्य अधिकारी बनेंगे।
स्लोगन:-
निर्भयता और नम्रता ही योगी व ज्ञानी आत्मा का स्वरूप है।
अव्यक्त इशारे -
सहजयोगी बनना है तो परमात्म प्यार के अनुभवी बनो
परमात्म प्यार
आनंदमय झूला है, इस सुखदाई झूले में झूलते सदा परमात्म प्यार में लवलीन रहो तो कभी
कोई परिस्थिति वा माया की हलचल आ नहीं सकती। परमात्म-प्यार अखुट है, अटल है, इतना
है जो सर्व को प्राप्त हो सकता है लेकिन परमात्म-प्यार प्राप्त करने की विधि है -
न्यारा बनना। जितना न्यारा बनेंगे उतना परमात्म प्यार का अधिकार प्राप्त होगा।