05-08-2024        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - तुम्हारे में ऑनेस्ट वह है जो सारे यूनिवर्स की सेवा करे, बहुतों को आपसमान बनाये, आराम पसन्द न हो''

प्रश्नः-
तुम ब्राह्मण बच्चे कौन-से बोल कभी भी बोल नहीं सकते हो?

उत्तर:-
तुम ब्राह्मण ऐसे कभी नहीं बोलेंगे कि हमारा ब्रह्मा से कोई कनेक्शन नहीं, हम तो डायरेक्ट शिवबाबा को याद करते हैं। बिना ब्रह्मा बाप के ब्राह्मण कहला नहीं सकते, जिनका ब्रह्मा से कनेक्शन नहीं अर्थात् जो ब्रह्मा मुख वंशावली नहीं वह शूद्र ठहरे। शूद्र कभी देवता नहीं बन सकते हैं।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) नये-नये सेन्टर्स की वृद्धि करने के लिए आप समान बनाने की सेवा करनी है। सेन्टर्स खोलते जाना है। एक जगह पर बैठना नहीं है।

2) फूलों का बगीचा तैयार करना है। हरेक को फूल बनकर दूसरों को आप समान फूल बनाना है। किसी भी सेवा में देह-अभिमान न आये।

वरदान:-
सर्व पदार्थो की आसक्तियों से न्यारे अनासक्त, प्रकृतिजीत भव

अगर कोई भी पदार्थ कर्मेन्द्रियों को विचलित करता है अर्थात् आसक्ति का भाव उत्पन्न होता है तो भी न्यारे नहीं बन सकेंगे। इच्छायें ही आसक्तियों का रूप हैं। कई कहते हैं इच्छा नहीं है लेकिन अच्छा लगता है। तो यह भी सूक्ष्म आसक्ति है - इसकी महीन रूप से चेकिंग करो कि यह पदार्थ अर्थात् अल्पकाल सुख के साधन आकर्षित तो नहीं करते हैं? यह पदार्थ प्रकृति के साधन हैं, जब इनसे अनासक्त अर्थात् न्यारे बनेंगे तब प्रकृतिजीत बनेंगे।

स्लोगन:-
मेरे-मेरे के झमेलों को छोड़ बेहद में रहो तब कहेंगे विश्व कल्याणकारी।