08-08-2025        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - सदा इसी खुशी में रहो कि हमने 84 का चक्र पूरा किया, अब जाते हैं अपने घर, बाकी थोड़े दिन यह कर्मभोग है''

प्रश्नः-
विकर्माजीत बनने वाले बच्चों को विकर्मों से बचने के लिए किस बात पर बहुत ध्यान देना है?

उत्तर:-
जो सर्व विकर्मों की जड़ देह-अभिमान है, उस देह-अभिमान में कभी न आयें, यह ध्यान रखना है। इसके लिए बार-बार देही-अभिमानी बन बाप को याद करना है। अच्छे और बुरे का फल जरूर मिलता है, अन्त में विवेक खाता है। लेकिन इस जन्म के पापों के बोझ को हल्का करने के लिए बाप को सच-सच सुनाना है।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) जब एकान्त वा फुर्सत मिलती है तो ज्ञान की अच्छी-अच्छी प्वाइंट्स पर विचार सागर मंथन कर लिखना है। सबको सन्देश पहुँचाने वा सबका कल्याण करने की युक्ति रचनी है।

2) विकर्मो से बचने के लिए देही-अभिमानी बन बाप को याद करना है। अभी कोई भी विकर्म नहीं करना है, इस जन्म के किये हुए विकर्म बापदादा को सच-सच सुनाने हैं।

वरदान:-
अटल भावी को जानते हुए भी श्रेष्ठ कार्य को प्रत्यक्ष रूप देने वाले सदा समर्थ भव

नया श्रेष्ठ विश्व बनने की भावी अटल होते हुए भी समर्थ भव के वरदानी बच्चे सिर्फ कर्म और फल के, पुरुषार्थ और प्रालब्ध के, निमित्त और निर्माण के कर्म फिलॉसाफी अनुसार निमित्त बन कार्य करते हैं। दुनिया वालों को उम्मींद नहीं दिखाई देती। और आप कहते हो यह कार्य अनेक बार हुआ है, अभी भी हुआ ही पड़ा है क्योंकि स्व परिवर्तन के प्रत्यक्ष प्रमाण के आगे और कोई प्रमाण की आवश्यकता ही नहीं। साथ-साथ परमात्म कार्य सदा सफल है ही।

स्लोगन:-
कहना कम, करना ज्यादा - यह श्रेष्ठ लक्ष्य महान बना देगा।

अव्यक्त इशारे - सहजयोगी बनना है तो परमात्म प्यार के अनुभवी बनो

सेवा में वा स्वंय की चढ़ती कला में सफलता का मुख्य आधार है - एक बाप से अटूट प्यार। बाप के सिवाए और कुछ दिखाई न दे। संकल्प में भी बाबा, बोल में भी बाबा, कर्म में भी बाप का साथ, ऐसी लवलीन स्थिति में रह एक शब्द भी बोलेंगे तो वह स्नेह के बोल दूसरी आत्मा को भी स्नेह में बाँध देंगे। ऐसी लवलीन आत्मा का एक बाबा शब्द ही जादू मंत्र का काम करेगा।