11-06-2025        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - अभी तुम्हें बेहद की पवित्रता को धारण करना है, बेहद की पवित्रता अर्थात् एक बाप के सिवाए और कोई याद न आये''

प्रश्नः-
बाप से वर्सा लेने के पहले का पुरुषार्थ और उसके बाद की स्थिति में क्या अन्तर होता है?

उत्तर:-
जब तुम बाप से वर्सा लेते हो तो देह के सब सम्बन्धों को छोड़ एक बाप को याद करने का पुरुषार्थ करते हो और जब वर्सा मिल जाता है तो बाप को ही भूल जाते हो। अभी वर्सा लेना है इसलिए कोई से भी नया संबंध नहीं जोड़ना है। नहीं तो भूलने में मुसीबत होगी। सब कुछ भूल एक को याद करो तो वर्सा मिल जायेगा।

गीत:-
यह वक्त जा रहा है.........

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) स्वर्ग में जाने का पासपोर्ट लेने के लिए बाप की याद से अपने विकर्मों को विनाश कर कर्मातीत अवस्था बनानी है। सज़ाओं से बचने का पुरुषार्थ करना है।

2) ज्ञानवान बन सबको रास्ता बताना है, चैतन्य लाइट हाउस बनना है। एक आंख में शान्तिधाम, दूसरी आंख में सुखधाम रहे। इस दु:खधाम को भूल जाना है।

वरदान:-
हर आत्मा को ऊंच उठाने की भावना से रिगार्ड देने वाले शुभचिंतक भव

हर आत्मा के प्रति श्रेष्ठ भावना अर्थात् ऊंच उठाने की वा आगे बढ़ाने की भावना रखना अर्थात् शुभ चिंतक बनना। अपनी शुभ वृत्ति से, शुभ चिंतक स्थिति से अन्य के अवगुण को भी परिवर्तन करना, किसी की भी कमजोरी वा अवगुण को अपनी कमजोरी समझ वर्णन करने के बजाए वा फैलाने के बजाए समाना और परिवर्तन करना यह है रिगार्ड। बड़ी बात को छोटा बनाना, दिलशिकस्त को शक्तिवान बनाना, उनके संग के रंग में नहीं आना, सदा उन्हें भी उमंग उत्साह में लाना - यह है रिगार्ड। ऐसे रिगार्ड देने वाले ही शुभचिंतक हैं।

स्लोगन:-
त्याग का भाग्य समाप्त करने वाला पुराना स्वभाव-संस्कार है, इसलिए इसका भी त्याग करो।

अव्यक्त इशारे- आत्मिक स्थिति में रहने का अभ्यास करो, अन्तर्मुखी बनो

जैसे ब्रह्मा बाप एकान्तप्रिय होने के कारण सदा अन्तर्मुखी रहे, मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ... यह पाठ पक्का किया, जिस कारण वे स्वयं भी सदा शान्ति और सुख के सागर में समाये रहे और अन्य आत्माओं को भी अपने शुद्ध संकल्प और वायब्रेशन द्वारा, वृत्ति और बोल द्वारा, सम्पर्क द्वारा शान्ति की वा सुख की अनुभूति कराते रहे, ऐसे फालो फादर करो।