11-11-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम दिल से
बाबा-बाबा कहो तो खुशी में रोमांच खड़े हो जायेंगे, खुशी में रहो तो मायाजीत बन
जायेंगे''
प्रश्नः-
बच्चों को किस
एक बात में मेहनत लगती है लेकिन खुशी और याद का वही आधार है?
उत्तर:-
आत्म-अभिमानी
बनने में ही मेहनत लगती है लेकिन इसी से खुशी का पारा चढ़ता है, मीठा बाबा याद आता
है। माया तुम्हें देह-अभिमान में लाती रहेगी, रूसतम से रूसतम होकर लड़ेगी, इसमें
मूंझना नहीं। बाबा कहते बच्चे माया के तूफानों से डरो मत, सिर्फ कर्मेन्द्रियों से
कोई विकर्म नहीं करो।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) माया के तूफानों से डरना वा मूँझना नहीं हैं। सिर्फ ध्यान रखना है
कर्मेन्द्रियों से कोई विकर्म न हो। ज्ञान सागर बाबा हमको पढ़ाते हैं - इसी खुशी
में रहना है।
2) सतोप्रधान बनने के लिए आत्म अभिमानी बनने की मेहनत करनी है, ज्ञान का विचार
सागर मंथन करना है, याद की यात्रा में रहना है।
वरदान:-
शुभ चिंतन
द्वारा ज्ञान सागर में समाने वाले अतीन्द्रिय सुख के अनुभवी भव
जैसे सागर के अन्दर रहने
वाले जीव जन्तु सागर में समाये हुए होते हैं, बाहर नहीं निकलना चाहते, मछली भी पानी
के अन्दर रहती है, सागर व पानी ही उसका संसार है। ऐसे आप बच्चे भी शुभ चिंतन द्वारा
ज्ञान सागर बाप में सदा समाये रहो, जब तक सागर में समाने का अनुभव नहीं किया तब तक
अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलने का, सदा हर्षित रहने का अनुभव नहीं कर सकेंगे।
इसके लिए स्वयं को एकान्तवासी बनाओ अर्थात् सर्व आकर्षण के वायब्रेशन से अन्तर्मुखी
बनो।
स्लोगन:-
अपने
चेहरे को ऐसा चलता फिरता म्यूज़ियम बनाओ जिसमें बाप बिन्दु दिखाई दे।
अव्यक्त इशारे -
अशरीरी व विदेही स्थिति का अभ्यास बढ़ाओ
अपने को शरीर के
बंधन से न्यारा बनाने के लिए अवतार समझो। अवतार हूँ, इस स्मृति में रह शरीर का आधार
ले कर्म करो। लेकिन कर्तापन के भान से न्यारे होकर कर्म करो। मैंने किया, मैं करता
हूँ... इस संकल्प को भी समर्पित कर दो तो कर्म के बंधन में बंधेंगे नहीं। देह में
होते भी विदेही अवस्था का अनुभव करेंगे।