16-06-2025        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - सदा खुशी में रहो कि हमें कोई देहधारी नहीं पढ़ाते, अशरीरी बाप शरीर में प्रवेश कर खास हमें पढ़ाने आये हैं''

प्रश्नः-
तुम बच्चों को ज्ञान का तीसरा नेत्र क्यों मिला है?

उत्तर:-
हमें ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है अपने शान्तिधाम और सुखधाम को देखने के लिए। इन आंखों से जो पुरानी दुनिया, मित्र-सम्बन्धी आदि दिखाई देते हैं उनसे बुद्धि निकाल देनी है। बाप आये हैं किचड़े से निकाल फूल (देवता) बनाने, तो ऐसे बाप का फिर रिगार्ड भी रखना है।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) विकर्मों से बचने के लिए बुद्धि की प्रीत एक बाप से लगानी है, इस सड़ी हुई देह का अभिमान छोड़ देना है।

2) हम वारियर्स हैं, इस स्मृति से माया रूपी दुश्मन पर विजय प्राप्त करनी है, उसकी परवाह नहीं करनी है। माया गुप्त रूप में बहुत प्रवेश करती है इसलिए उसे परखना और सम्भलना है।

वरदान:-
मन्सा-वाचा और कर्मणा की पवित्रता में सम्पूर्ण मार्क्स लेने वाले नम्बरवन आज्ञाकारी भव

मन्सा पवित्रता अर्थात् संकल्प में भी अपवित्रता के संस्कार इमर्ज न हों। सदा आत्मिक स्वरूप अर्थात् भाई-भाई की श्रेष्ठ स्मृति रहे। वाचा में सदा सत्यता और मधुरता हो, कर्मणा में सदा नम्रता, सन्तुष्टता और हर्षितमुखता हो। इसी आधार पर नम्बर मिलते हैं और ऐसे सम्पूर्ण पवित्र आज्ञाकारी बच्चों का बाप भी गुणगान करते हैं। वही अपने हर कर्म से बाप के कर्तव्य को सिद्ध करने वाले समीप रत्न हैं।

स्लोगन:-
सम्बन्ध-सम्पर्क और स्थिति में लाइट बनो, दिनचर्या में नहीं।

अव्यक्त इशारे-आत्मिक स्थिति में रहने का अभ्यास करो, अन्तर्मुखी बनो

अन्तर्मुखी आत्मायें कैसी भी परिस्थिति हो, चाहे अच्छी हो, चाहे हिलाने वाली हो लेकिन हर समय, हर सरकमस्टांस के अन्दर अपने को एडजस्ट कर लेती हैं। अकेले हो या संगठन में हो, दोनों में एडजस्ट होना - ये है ब्राह्मण जीवन।