17-06-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - अपना कल्याण
करना है तो हर प्रकार की परहेज रखो, फूल बनने के लिए पवित्र के हाथ का शुद्ध भोजन
खाओ''
प्रश्नः-
तुम बच्चे अभी
यहाँ ही कौन-सी प्रैक्टिस करते हो, जो 21 जन्म तक रहेगी?
उत्तर:-
सदा तन-मन से
तन्दुरूस्त रहने की प्रैक्टिस तुम यहाँ से ही करते हो। तुम्हें दधीचि ऋषि मिसल यज्ञ
सेवा में हड्डियां भी देनी हैं लेकिन हठयोग की बात नहीं है। अपना शरीर कमजोर नहीं
करना है। तुम योग से 21 जन्मों के लिए तन्दुरूस्त बनते हो, उसकी प्रैक्टिस यहाँ से
करते हो।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अन्तर्मुखी बन अपने आप से बातें करनी हैं - जबकि हम देवता बनते हैं
तो हमारी चलन कैसी है! कोई अशुद्ध खान-पान तो नहीं है!
2) अपना भविष्य 21 जन्मों के लिए ऊंचा बनाना है तो सुदामें मिसल जो कुछ है
भोलानाथ बाप के हवाले कर दो। पढ़ाई के लिए कोई भी बहाना न दो।
वरदान:-
आदि और अनादि
स्वरूप की स्मृति द्वारा अपने निजी स्वधर्म को अपनाने वाले पवित्र और योगी भव
ब्राह्मणों का निजी
स्वधर्म पवित्रता है, अपवित्रता परधर्म है। जिस पवित्रता को अपनाना लोग मुश्किल
समझते हैं वह आप बच्चों के लिए अति सहज है क्योंकि स्मृति आई कि हमारा वास्तविक
आत्म स्वरूप सदा पवित्र है। अनादि स्वरूप पवित्र आत्मा है और आदि स्वरूप पवित्र
देवता है। अभी का अन्तिम जन्म भी पवित्र ब्राह्मण जीवन है इसलिए पवित्रता ही
ब्राह्मण जीवन की पर्सनालिटी है। जो पवित्र है वही योगी है।
स्लोगन:-
सहजयोगी
कहकर अलबेलापन नहीं लाओ, शक्ति रूप बनो।
अव्यक्त
इशारे-आत्मिक स्थिति में रहने का अभ्यास करो, अन्तर्मुखी बनो
कहा जाता
“अन्तर्मुखी सदा सुखी''। उन्हें कोई बाहर की आकर्षण आकर्षित नहीं कर सकती। कभी मनमत,
कभी परमत आकर्षित नहीं कर सकती। अन्तर्मुखी सदा सुखी रहने वाले, सुखदाता के बच्चे
मास्टर सुखदाता होंगे, बाहरमुखता से मुक्त होंगे।