20-05-2025        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - बाबा आया है तुम बच्चों को अविनाशी कमाई कराने, अभी तुम ज्ञान रत्नों की जितनी कमाई करने चाहो कर सकते हो''

प्रश्नः-
आसुरी संस्कारों को बदलकर दैवी संस्कार बनाने के लिए कौन-सा विशेष पुरुषार्थ चाहिए?

उत्तर:-
संस्कारों को बदलने के लिए जितना हो सके देही-अभिमानी रहने का अभ्यास करो। देह-अभिमान में आने से ही आसुरी संस्कार बनते हैं। बाप आसुरी संस्कारों को दैवी संस्कार बनाने के लिए आये हैं, पुरुषार्थ करो पहले मैं देही आत्मा हूँ, पीछे यह शरीर है।

गीत:-
तूने रात गँवाई सो के .......

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) एक बाप से अव्यभिचारी प्रीत रखते-रखते कर्मातीत अवस्था को पाना है। इस पुरानी देह और पुरानी दुनिया से बेहद का वैराग्य हो।

2) कोई भी कर्तव्य बाप के डायरेक्शन के विरूद्ध नहीं करना है। युद्ध के मैदान में कभी भी हार नहीं खानी है। डबल अहिंसक बनना है।

वरदान:-
शुभ भावना से सेवा करने वाले बाप समान अपकारियों पर भी उपकारी भव

जैसे बाप अपकारियों पर उपकार करते हैं, ऐसे आपके सामने कैसी भी आत्मा हो लेकिन अपने रहम की वृत्ति से, शुभ भावना से उसे परिवर्तन कर दो - यही है सच्ची सेवा। जैसे साइन्स वाले रेत में भी खेती पैदा कर देते हैं ऐसे साइलेन्स की शक्ति से रहमदिल बन अपकारियों पर भी उपकार कर धरनी को परिवर्तन करो। स्व परिवर्तन से, शुभ भावना से कैसी भी आत्मा परिवर्तन हो जायेगी, क्योंकि शुभ भावना सफलता अवश्य प्राप्त कराती है।

स्लोगन:-
ज्ञान का सिमरण करना ही सदा हर्षित रहने का आधार है।


अव्यक्त इशारे - रूहानी रॉयल्टी और प्युरिटी की पर्सनैलिटी धारण करो

आप ब्राह्मणों जैसी रूहानी पर्सनैलिटी सारे कल्प में और किसी की भी नहीं है क्योंकि आप सबकी पर्सनैलिटी बनाने वाला ऊंचे ते ऊंचा स्वयं परम आत्मा है। आपकी सबसे बड़े ते बड़ी पर्सनैलिटी है- स्वप्न वा संकल्प में भी सम्पूर्ण प्युरिटी। इस प्युरिटी के साथ-साथ चेहरे और चलन में रूहानियत की भी पर्सनैलिटी है - अपनी इस पर्सनैलिटी में सदा स्थित रहो तो सेवा स्वत: होगी।