20-09-2024        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - तुम्हें बाप समान खुदाई खिदमतगार बनना है, संगम पर बाप आते हैं तुम बच्चों की खिदमत (सेवा) करने''

प्रश्नः-
यह पुरूषोत्तम संगमयुग ही सबसे सुहावना और कल्याणकारी है - कैसे?

उत्तर:-
इसी समय तुम बच्चे स्त्री और पुरूष दोनों ही उत्तम बनते हो। यह संगमयुग है ही कलियुग अन्त और सतयुग आदि के बीच का समय। इस समय ही बाप तुम बच्चों के लिए ईश्वरीय युनिवर्सिटी खोलते हैं, जहाँ तुम मनुष्य से देवता बनते हो। ऐसी युनिवर्सिटी सारे कल्प में कभी नहीं होती। इसी समय सबकी सद्गति होती है।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस रावण राज्य में रहते पतित लोकलाज़ कुल की मर्यादा को छोड़ बेहद बाप की बात माननी है, गृहस्थ व्यवहार में कमल फूल समान रहना है।

2) इस वैराइटी विराट लीला को अच्छी तरह समझना है, इसमें पार्ट बजाने वाली आत्मा निर्लेप नहीं, अच्छे-बुरे कर्म करती और उसका फल पाती है, इस राज़ को समझकर श्रेष्ठ कर्म करने हैं।

वरदान:-
बाप के संस्कारों को अपने ओरीज्नल संस्कार बनाने वाले शुभभावना, शुभकामनाधारी भव

अभी तक कई बच्चों में फीलिंग के, किनारा करने के, परचिंतन करने वा सुनने के भिन्न-भिन्न संस्कार हैं, जिन्हें कह देते हो कि क्या करें मेरे ये संस्कार हैं...ये मेरा शब्द ही पुरुषार्थ में ढीला करता है। यह रावण की चीज़ है, मेरी नहीं। लेकिन जो बाप के संस्कार हैं वही ब्राह्मणों के ओरिज्नल संस्कार हैं। वह संस्कार हैं विश्वकल्याणकारी, शुभ चिंतन-धारी। सबके प्रति शुभ भावना, शुभकामनाधारी।

स्लोगन:-
जिनमें समर्थी है वही सर्व शक्तियों के खजाने का अधिकारी है।