21-10-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठेबच्चे - सवेरे-सवेरे
उठ बाबा से मीठी-मीठीबातें करो, विचार सागर मंथन करने के लिए सवेरे का टाइम बहुत
अच्छा है''
प्रश्नः-
भक्त भी भगवान
को सर्वशक्तिमान् कहते हैं और तुम बच्चे भी, लेकिन दोनों में अन्तर क्या है?
उत्तर:-
वह कहते भगवान
तो जो चाहे वह कर सकता है। सब कुछ उसके हाथ में है। लेकिन तुम जानते हो बाबा ने कहा
है मैं भी ड्रामा के बंधन में हूँ। ड्रामा सर्वशक्तिमान् है। बाप को सर्वशक्तिमान्
इसलिए कहा जाता क्योंकि उनके पास सर्व को सद्गति देने की शक्ति है। ऐसा राज्य
स्थापन करता जिसे कभी कोई छीन नहीं सकता।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सवेरे-सवेरे उठकर बाबा से मीठी-मीठीबातें करनी हैं। रोज़ खुशी की
खुराक खाते हुए अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करना है।
2) सतयुगी राजधानी स्थापन करने में बाप का पूरा मददगार बनने के लिए पावन बनना
है, याद से विकर्म विनाश करने हैं, भोजन भी शुद्धि से बनाना है।
वरदान:-
दिव्य गुणों
के आह्वान द्वारा सर्व अवगुणों की आहुति देने वाले सन्तुष्ट आत्मा भव
जैसे दीपावली पर विशेष
सफाई और कमाई का ध्यान रखते हैं। ऐसे आप भी सब प्रकार की सफाई और कमाई का लक्ष्य रख
सन्तुष्ट आत्मा बनो। सन्तुष्टता द्वारा ही सर्व दिव्य गुणों का आह्वान कर सकेंगे।
फिर अवगुणों की आहुति स्वत: हो जायेगी। अन्दर जो कमजोरियाँ, कमियां, निर्बलता,
कोमलता रही हुई है, उन्हें समाप्त कर अब नया खाता शुरू करो और नये संस्कारों के नये
वस्त्र धारण कर सच्ची दीपावली मनाओ।
स्लोगन:-
स्वमान
की सीट पर सदा सेट रहना है तो दृढ़ संकल्प की बेल्ट अच्छी तरह से बांध लो।
मातेश्वरी जी के
अनमोल महावाक्य
“इस अविनाशी
ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त करने के लिये कोई भी भाषा सीखनी नहीं पड़ती''
अपना जो ईश्वरीय
ज्ञान है, वो बड़ा ही सहज और मीठा है, इससे जन्म-जन्मान्तर के लिये कमाई जमा होती
है। यह ज्ञान इतना सहज है जो कोई भी महान आत्मा, अहिल्या जैसी पत्थरबुद्धि, कोई भी
धर्म वाला बालक से लेकर वृद्ध तक कोई भी प्राप्त कर सकता है। देखो, इतना सहज होते
भी दुनिया वाले इस ज्ञान को बहुत भारी समझते हैं। कोई समझते हैं जब हम बहुत वेद,
शास्त्र, उपनिषद पढ़कर बड़े-बड़े विद्वान बनें, उसके लिये फिर भाषा सीखनी पड़े।
बहुत हठयोग करें तब ही प्राप्ति हो सकेगी लेकिन यह तो हम अपने अनुभव से जान चुके
हैं कि यह ज्ञान बड़ा ही सहज और सरल है क्योंकि स्वयं परमात्मा पढ़ा रहा है, इसमें
न कोई हठक्रिया, न जप तप, न शास्त्रवादी पण्डित बनना, न कोई इसके लिये संस्कृत भाषा
सीखने की जरुरत है, यह तो नेचुरल आत्मा को अपने परमपिता परमात्मा के साथ योग लगाना
है। भल कोई इस ज्ञान को न भी धारण कर सके तो भी सिर्फ योग से भी बहुत फायदा होगा।
इससे एक तो पवित्र बनते हैं, दूसरा फिर कर्मबन्धन भस्मीभूत होते हैं और कर्मातीत
बनते हैं, इतनी ताकत है इस सर्वशक्तिवान परमात्मा की याद में। भल वो अपने साकार
ब्रह्मा तन द्वारा हमें योग सिखला रहे हैं परन्तु याद फिर भी डायरेक्ट उस ज्योति
स्वरूप शिव परमात्मा को करना है, उस याद से ही कर्मबन्धन की मैल उतरेगी। अच्छा। ओम्
शान्ति
अव्यक्त इशारे -
स्वयं और सर्व के प्रति मन्सा द्वारा योग की शक्तियों का प्रयोग करो
शान्ति की शक्ति
का प्रयोग पहले स्व के प्रति, तन की व्याधि के ऊपर करके देखो। इस शक्ति द्वारा
कर्मबन्धन का रूप, मीठेसम्बन्ध के रूप में बदल जायेगा। यह कर्मभोग, कर्म का कड़ा
बन्धन साइलेन्स की शक्ति से पानी की लकीर मिसल अनुभव होगा। भोगने वाला नहीं, भोगना
भोग रही हूँ - यह नहीं लेकिन साक्षी दृष्टा हो इस हिसाब-किताब का दृश्य भी देखते
रहेंगे।