25-09-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - यह ड्रामा
का खेल एक्यूरेट चल रहा है, जिसका जो पार्ट जिस घड़ी होना चाहिए, वही रिपीट हो रहा
है, यह बात यथार्थ रीति समझना है''
प्रश्नः-
तुम बच्चों का
प्रभाव कब निकलेगा? अभी तक किस शक्ति की कमी है?
उत्तर:-
जब योग में
मजबूत होंगे तब प्रभाव निकलेगा। अभी वह जौहर नहीं है। याद से ही शक्ति मिलती है।
ज्ञान तलवार में याद का जौहर चाहिए, जो अभी तक कम है। अगर अपने को आत्मा समझ बाप को
याद करते रहो तो बेड़ा पार हो जायेगा। यह सेकण्ड की ही बात है।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) मन्दिरों आदि को देखते सदा यह स्मृति रहे कि यह सब हमारे ही यादगार
हैं। अब हम ऐसा लक्ष्मी-नारायण बन रहे हैं।
2) गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान रहना है। हंस और बगुले साथ हैं तो बहुत
युक्ति से चलना है। सहन भी करना है।
वरदान:-
एकता और
सन्तुष्टता के सर्टीफिकेट द्वारा सेवाओं में सदा सफलतामूर्त भव
सेवाओं में सफलतामूर्त बनने
के लिए दो बातें ध्यान में रखनी है एक - संस्कारों को मिलाने की युनिटी और दूसरा
स्वयं भी सदा सन्तुष्ट रहो तथा दूसरों को भी सन्तुष्ट करो। सदा एक दो में स्नेह की
भावना से, श्रेष्ठता की भावना से सम्पर्क में आओ तो यह दोनों सर्टीफिकेट मिल जायेंगे।
फिर आपकी प्रैक्टिकल जीवन बाप के सूरत का दर्पण बन जायेगी और उस दर्पण में बाप जो
है जैसा है वैसा दिखाई देगा।
स्लोगन:-
आत्म
स्थिति में स्थित होकर अनेक आत्माओं को जीयदान दो तो दुआयें मिलेंगी।
अव्यक्त इशारे -
अब लगन की अग्नि को प्रज्वलित कर योग को ज्वाला रूप बनाओ
जैसे अग्नि में
कोई भी चीज़ डालो तो नाम, रूप, गुण सब बदल जाता है, ऐसे जब बाप के याद के लगन की
अग्नि में पड़ते हो तो परिवर्तन हो जाते हो। मनुष्य से ब्राह्मण बन जाते, फिर
ब्राह्मण से फरिश्ता सो देवता बन जाते। लग्न की अग्नि से ऐसा परिवर्तन होता है जो
अपनापन कुछ भी नहीं रहता, इसलिए याद को ही ज्वाला रूप कहा है।