25-10-2025        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठेबच्चे - संगमयुग पर ही तुम्हें आत्म-अभिमानी बनने की मेहनत करनी पड़ती सतयुग अथवा कलियुग में यह मेहनत होती नहीं''

प्रश्नः-
श्रीकृष्ण का नाम उनके माँ बाप से भी अधिक बाला है, क्यों?

उत्तर:-
क्योंकि श्रीकृष्ण से पहले जिनका भी जन्म होता है वो जन्म योगबल से नहीं होता। श्रीकृष्ण के माँ बाप ने कोई योगबल से जन्म नहीं लिया है। 2- पूरी कर्मातीत अवस्था वाले राधे-कृष्ण ही हैं, वही सद्गति को पाते हैं। जब सब पाप आत्मायें खत्म हो जाती हैं तब गुलगुल (पावन) नई दुनिया में श्रीकृष्ण का जन्म होता है, उसे ही वैकुण्ठ कहा जाता है। 3- संगम पर श्रीकृष्ण की आत्मा ने, सबसे अधिक पुरुषार्थ किया है इसलिए उनका नाम बाला है।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बुद्धि को पवित्र बनाने के लिए याद की यात्रा में मस्त रहना है। कर्म करते भी एक माशूक याद रहे - तब विकर्माजीत बनेंगे।

2) इस छोटे से युग में मनुष्य से देवता बनने की मेहनत करनी है। अच्छे कर्मों के अनुसार अच्छे संस्कारों को धारण कर अच्छे कुल में जाना है।

वरदान:-
अपनी रूहानी लाइटस द्वारा वायुमण्डल को परिवर्तन करने की सेवा करने वाले सहज सफलतामूर्त भव

जैसे साकार सृष्टि में जिस रंग की लाइट जलाते हो वही वातावरण हो जाता है। अगर हरी लाइट होती है तो चारों ओर वही प्रकाश छा जाता है। लाल लाइट जलाते हो तो याद का वायुमण्डल बन जाता है। जब स्थूल लाइट वायुमण्डल को परिवर्तन कर देती है तो आप लाइट हाउस भी पवित्रता की लाइट व सुख की लाइट से वायुमण्डल परिवर्तन करने की सेवा करो तो सफलतामूर्त बन जायेंगे। स्थूल लाइट आंखों से देखते हैं, रूहानी लाइट अनुभव से जानेंगे।

स्लोगन:-
व्यर्थ बातों में समय और संकल्प गॅवाना - यह भी अपवित्रता है।


अव्यक्त इशारे - स्वयं और सर्व के प्रति मन्सा द्वारा योग की शक्तियों का प्रयोग करो

कोई भी खजाना कम खर्च करके अधिक प्राप्ति कर लेना, यही योग का प्रयोग है। मेहनत कम सफलता ज्यादा इस विधि से प्रयोग करो। जैसे समय वा संकल्प श्रेष्ठ खजाने हैं, तो संकल्प कम से कम खर्च हों लेकिन प्राप्ति ज्यादा हो। जो साधारण व्यक्ति दो चार मिनट संकल्प चलाने के बाद, सोचने के बाद सफलता या प्राप्ति कर सकता है वह आप एक दो सेकेण्ड में कर सकते हो, इसको कहते हैं कम खर्चा बाला नशीन। खर्च कम करो लेकिन प्राप्ति 100 गुणा हो इससे समय की वा संकल्प की जो बचत होगी, वह औरों की सेवा में लगा सकेंगे, दान पुण्य कर सकेंगे, यही योग का प्रयोग है।