26-09-2025        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - सदा यही स्मृति रहे कि हम श्रीमत पर अपनी सतयुगी राजधानी स्थापन कर रहे हैं, तो अपार खुशी रहेगी''

प्रश्नः-
यह ज्ञान का भोजन किन बच्चों को हज़म नहीं हो सकता है?

उत्तर:-
जो भूलें करके, छी-छी (पतित) बनकर फिर क्लास में आकर बैठते हैं, उन्हें ज्ञान हज़म नहीं हो सकता। वह मुख से कभी भी नहीं कह सकते कि भगवानुवाच काम महाशत्रु है। उनका दिल अन्दर ही अन्दर खाता रहेगा। वह आसुरी सम्प्रदाय के बन जाते हैं।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) कभी भी आपस में वा बाप से रूठना नहीं है, बाप रिझाने आये हैं इसलिए कभी रंज नहीं होना है। बाप का सामना नहीं करना है।

2) पुरानी दुनिया से, पुरानी देह से दिल नहीं लगानी है। सत बाप, सत टीचर और सतगुरू के साथ सच्चा रहना है। सदा एक की श्रीमत पर चल देही-अभिमानी बनना है।

वरदान:-
अपने तपस्वी स्वरूप द्वारा सर्व को प्राप्तियों की अनुभूति कराने वाले मास्टर विधाता भव

जैसे सूर्य विश्व को रोशनी की और अनेक विनाशी प्राप्तियों की अनुभूति कराता है ऐसे आप तपस्वी आत्मायें अपने तपस्वी स्वरूप द्वारा सर्व को प्राप्ति के किरणों की अनुभूति कराओ। इसके लिए पहले जमा का खाता बढ़ाओ। फिर जमा किये हुए खजाने मास्टर विधाता बन देते जाओ। तपस्वीमूर्त का अर्थ है - तपस्या द्वारा शान्ति के शक्ति की किरणें चारों ओर फैलती हुई अनुभव में आयें।

स्लोगन:-
स्वयं निर्माण बनकर सर्व को मान देते चलो - यही सच्चा परोपकार है।

अव्यक्त इशारे - अब लगन की अग्नि को प्रज्वलित कर योग को ज्वाला रूप बनाओ

अभी अच्छा-अच्छा कहते हैं, लेकिन अच्छा बनना है यह प्ररेणा नहीं मिल रही है। उसका एक ही साधन है - संगठित रुप में ज्वाला स्वरूप बनो। एक एक चैतन्य लाइट हाउस बनो। सेवाधारी हो, स्नेही हो, एक बल एक भरोसे वाले हो, यह तो सब ठीक है, लेकिन मास्टर सर्वशक्तिवान की स्टेज, स्टेज पर आ जाए तो सब आपके आगे परवाने के समान चक्र लगाने लगेंगे।