28-04-2025        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - तुम्हारा प्यार विनाशी शरीरों से नहीं होना चाहिए, एक विदेही से प्यार करो, देह को देखते हुए नहीं देखो''

प्रश्नः-
बुद्धि को स्वच्छ बनाने का पुरूषार्थ क्या है? स्वच्छ बुद्धि की निशानी क्या होगी?

उत्तर:-
देही-अभिमानी बनने से ही बुद्धि स्वच्छ बनती है। ऐसे देही-अभिमानी बच्चे अपने को आत्मा समझ एक बाप को प्यार करेंगे। बाप से ही सुनेंगे। लेकिन जो मूढ़मती हैं वह देह को प्यार करते हैं, देह को ही श्रृंगारते रहते हैं।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) किसी भी देहधारी को अपना आधार नहीं बनाना है। शरीरों से प्रीत नहीं रखनी है। दिल की प्रीत एक बाप से रखनी है। किसी के नाम-रूप में नहीं फँसना है।

2) याद का चार्ट शौक से रखना है, इसमें सुस्त नहीं बनना है। चार्ट में देखना है - मेरी बुद्धि किसके तरफ जाती है? कितना टाइम वेस्ट करते हैं? सुख देने वाला बाप कितना समय याद रहता है?

वरदान:-
गृहस्थ व्यवहार और ईश्वरीय व्यवहार दोनों की समानता द्वारा सदा हल्के और सफल भव

सभी बच्चों को शरीर निर्वाह और आत्म निर्वाह की डबल सेवा मिली हुई है। लेकिन दोनों ही सेवाओं में समय का, शक्तियों का समान अटेन्शन चाहिए। यदि श्रीमत का कांटा ठीक है तो दोनों साइड समान होंगे। लेकिन गृहस्थ शब्द बोलते ही गृहस्थी बन जाते हो तो बहाने बाजी शुरू हो जाती है। इसलिए गृहस्थी नहीं ट्रस्टी हैं, इस स्मृति से गृहस्थ व्यवहार और ईश्वरीय व्यवहार दोनों में समानता रखो तो सदा हल्के और सफल रहेंगे।

स्लोगन:-
फर्स्ट डिवीजन में आने के लिए कर्मेन्द्रिय जीत, मायाजीत बनो।

अव्यक्त इशारे - “कम्बाइण्ड रूप की स्मृति से सदा विजयी बनो''

आपके शिव शक्ति के कम्बाइन्ड रूप का यादगार सदा पूजा जाता है। शक्ति शिव से अलग नहीं, शिव शक्ति से अलग नहीं। ऐसे कम्बाइन्ड रूप में रहो, इसी स्वरूप को ही सहजयोगी कहा जाता है। योग लगाने वाले नहीं लेकिन सदा कम्बाइन्ड अर्थात् साथ रहने वाले। जो वायदा है कि साथ रहेंगे, साथ जियेंगे, साथ चलेंगे..... यह वायदा पक्का याद रखो।