28-05-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - अभी ड्रामा
का चक्र पूरा होता है, तुम्हें क्षीरखण्ड बनकर नई दुनिया में आना है, वहाँ सब
क्षीरखण्ड हैं, यहाँ लूनपानी हैं''
प्रश्नः-
तुम त्रिनेत्री
बच्चे किस नॉलेज को जान कर त्रिकालदर्शी बन गये हो?
उत्तर:-
तुम्हें अभी
सारे वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी की नॉलेज मिली है, सतयुग से लेकर कलियुग अन्त तक
की हिस्ट्री-जॉग्राफी तुम जानते हो। तुम्हें ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला कि आत्मा एक
शरीर छोड़ दूसरा लेती है। संस्कार आत्मा में हैं। अब बाप कहते हैं - बच्चे, नाम-रूप
से न्यारा बनो। अपने को आत्मा अशरीरी समझो।
गीत:-
धीरज धर मनुवा.......
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अभी सृष्टि बदलने की लीला चल रही है इसलिए स्वयं को बदलना है। क्षीरखण्ड होकर
रहना है।
2) सवेरे उठकर एक
बाप की याद में बैठना है, उस समय और कोई भी याद न आये। पुरानी दुनिया से बेहद का
वैरागी बन 5 विकारों का सन्यास करना है।
वरदान:-
बेहद की स्थिति
में स्थित रह, सेवा के लगाव से न्यारे और प्यारे विश्व सेवाधारी भव
विश्व सेवाधारी अर्थात्
बेहद की स्थिति में स्थित रहने वाले। ऐसे सेवाधारी सेवा करते हुए भी न्यारे और सदा
बाप के प्यारे रहते हैं। सेवा के लगाव में नहीं आते क्योंकि सेवा का लगाव भी सोने
की जंजीर है। यह बंधन बेहद से हद में ले आता है। इसलिए देह की स्मृति से, ईश्वरीय
सम्बन्ध से, सेवा के साधनों के लगाव से न्यारे और बाप के प्यारे बनो तो विश्व
सेवाधारी का वरदान प्राप्त हो जायेगा और सदा सफलता मिलती रहेगी।
स्लोगन:-
व्यर्थ
संकल्पों को एक सेकण्ड में स्टॉप करने की रिहर्सल करो तो शक्तिशाली बन जायेंगे।
अव्यक्त इशारे -
रूहानी रॉयल्टी और प्युरिटी की पर्सनैलिटी धारण करो
आप सबकी पहली
प्रवृत्ति है अपनी देह की प्रवृत्ति, फिर है देह के सम्बन्ध की प्रवृत्ति। तो पहली
प्रवृत्ति - देह की हर कर्मेन्द्रिय को पवित्र बनाना है। जब तक देह की प्रवृत्ति को
पवित्र नहीं बनाया है तब तक देह के सम्बन्ध की प्रवृत्ति चाहे हद की हो, चाहे बेहद
की हो, उसको भी पवित्र नहीं बना सकेंगे। तो पहले अपने आपसे पूछो कि अपने शरीर रूपी
घर को अर्थात् संकल्पों को, बुद्धि को, नयनों को और मुख को रुहानी अर्थात् पवित्र
बनाया है? ऐसी पवित्र आत्मायें ही महान हैं।