29-04-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - यह तुम्हारा
बहुत अमूल्य जन्म है, इसी जन्म में तुम्हें मनुष्य से देवता बनने के लिए पावन बनने
का पुरूषार्थ करना है''
प्रश्नः-
ईश्वरीय
सन्तान कहलाने वाले बच्चों की मुख्य धारणा क्या होगी?
उत्तर:-
वह आपस में
बहुत-बहुत क्षीरखण्ड होकर रहेंगे। कभी लूनपानी नहीं होंगे। जो देह-अभिमानी मनुष्य
हैं वह उल्टा सुल्टा बोलते, लड़ते झगड़ते हैं। तुम बच्चों में वह आदत नहीं हो सकती।
यहाँ तुम्हें दैवीगुण धारण करने हैं, कर्मातीत अवस्था को पाना है।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अन्दर अपनी जांच करनी है - हम बाप की याद में कितना समय रहते हैं?
दैवीगुण कहाँ तक धारण किये हैं? हमारे में कोई अवगुण तो नहीं हैं? हमारा खान-पान,
चाल-चलन रॉयल है? फालतू बातें तो नहीं करते? झूठ तो नहीं बोलते हैं?
2) याद का चार्ट बढ़ाने के लिए अभ्यास करना है - हम सब आत्मायें भाई-भाई हैं।
देह-अभिमान से दूर रहना है। अपनी एकरस स्थिति जमानी है, इसके लिए टाइम देना है।
वरदान:-
पांचों तत्वों
और पांचों विकारों को अपना सेवाधारी बनाने वाले मायाजीत स्वराज्य अधिकारी भव
जैसे सतयुग में विश्व
महाराजा व विश्व महारानी की राजाई ड्रेस को पीछे से दास-दासियां उठाते हैं, ऐसे
संगमयुग पर आप बच्चे जब मायाजीत स्वराज्य अधिकारी बन टाइटल्स रूपी ड्रेस से सजे
सजाये रहेंगे तो ये 5 तत्व और 5 विकार आपकी ड्रेस को पीछे से उठायेंगे अर्थात् अधीन
होकर चलेंगे। इसके लिए दृढ़ संकल्प की बेल्ट से टाइटल्स की ड्रेस को टाइट करो,
भिन्न भिन्न ड्रेस और श्रृंगार के सेट से सज-धज कर बाप के साथ रहो तो यह विकार वा
तत्व परिवर्तन हो सहयोगी सेवाधारी हो जायेंगे।
स्लोगन:-
जिन
गुणों वा शक्तियों का वर्णन करते हो उनके अनुभवों में खो जाओ। अनुभव ही सबसे बड़ी
अथॉर्टी है।
अव्यक्त इशारे -
“कम्बाइण्ड रूप की स्मृति से सदा विजयी बनो''
स्वयं को बाप के
साथ कम्बाइन्ड समझने से विनाशी साथी बनाने का संकल्प समाप्त हो जायेगा क्योंकि
सर्वशक्तिमान साथी है। जैसे सूर्य के आगे अंधकार ठहर नहीं सकता वैसे सर्वशक्तिमान
के आगे माया का कोई भी व्यर्थ संकल्प भी ठहर नहीं सकता। कोई भी दुश्मन वार करने के
पहले अकेला बनाता है, इसलिए कभी अकेले नहीं बनो