30-07-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - माया दुश्मन
तुम्हारे सामने है इसलिए अपनी बहुत-बहुत सम्भाल करनी है, अगर चलते-चलते माया में
फँस गये तो अपनी तकदीर को लकीर लगा देंगे''
प्रश्नः-
तुम राजयोगी
बच्चों का मुख्य कर्तव्य क्या है?
उत्तर:-
पढ़ना और
पढ़ाना, यही तुम्हारा मुख्य कर्तव्य है। तुम हो ईश्वरीय मत पर। तुम्हें कोई जंगल
में नहीं जाना है। घर गृहस्थ में रहते शान्ति में बैठ बाप को याद करना है। अल्फ और
बे, इन्हीं दो शब्दों में तुम्हारी सारी पढ़ाई आ जाती है।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप के वर्से का पूरा अधिकार लेने के लिए जीते जी मरना है। एडाप्ट हो
जाना है। कभी भी अपनी ऊंची तकदीर को लकीर नहीं लगानी है।
2) कोई भी उल्टी-सुल्टी बात सुनकर संशय में नहीं आना है। ज़रा भी निश्चय न हिले।
इस दु:खधाम को आग लगने वाली है इसलिए इससे अपना बुद्धियोग निकाल लेना है।
वरदान:-
विशेषता रूपी
संजीवनी बूटी द्वारा मूर्छित को सुरजीत करने वाले विशेष आत्मा भव
हर आत्मा को श्रेष्ठ स्मृति
की, विशेषताओं की स्मृति रूपी संजीवनी बूटी खिलाओ तो वह मूर्छित से सुरजीत हो जायेगी।
विशेषताओं के स्वरूप का दर्पण उसके सामने रखो। दूसरों को स्मृति दिलाने से आप विशेष
आत्मा बन ही जायेंगे। अगर आप किसी को कमजोरी सुनायेंगे तो वह छिपायेंगे, टाल देंगे
आप विशेषता सुनाओ तो स्वयं ही अपनी कमजोरी स्पष्ट अनुभव करेंगे। इसी संजीवनी बूटी
से मूर्छित को सुरजीत कर उड़ते चलो और उड़ाते चलो।
स्लोगन:-
नाम-मान-शान व साधनों का संकल्प में भी त्याग ही महान त्याग है।
अव्यक्त इशारे -
संकल्पों की शक्ति जमा कर श्रेष्ठ सेवा के निमित्त बनो
निमित्त बने हुए
बच्चों को विशेष अपने हर संकल्प के ऊपर अटेन्शन देना चाहिए, जब आप निर्विकल्प,
निरव्यर्थ संकल्प रहेंगे तब बुद्धि ठीक निर्णय करेगी, निर्णय ठीक है तो निवारण भी
सहज कर लेंगे। निवारण करने के बजाए अगर आप ही कारण, कारण कहेंगे तो आपके पीछे वाले
भी हर बात में कारण बताते रहेंगे।